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२२०] प्राचीन जैन स्मारक।
आजीतम् कविचक्रवर्ति उरुतर श्रीशांतराजेन तद् ।
वीक्ष्ये तम् परिमाणलक्षणमिहाकारिदे तद् विभोः ॥ १६ ॥ उपरके श्लोकोंमें जो माप है वह इस तरह है(१) पगसे मस्तकके अन्त तक हाथ ३६१-० (२) पगसे नाभितक
, २०-० (३) नाभिसे मस्तकतक
, १६१-० (४) ढोढ़ीसे मस्तकतक
६-३ (५) प्रत्येक कानकी ऊंचाई (६) पीछे एक कानसे दूसरे कान तक , (-० (७) गलेका घेरा (८) गलेकी ऊंचाई (९) कंधेसे कंधे तक चौड़ाई
, १६-० (१०) वक्षस्थलपरके स्तनसे चारों तरफ रेखाकी माप ४-९ (११) कमरका घेरा
२०-० (१२) कंधेसे मध्यकी अंगुली तक (१३) कोहनीका घेरा
६-० (१४) हाथके अंगूठेकी लम्बाई
२१.. (१५) पगके अंगूठेकी ,
४१-० (१६) पगकी चौड़ाई
नीचे लिखे व्यक्तियोंद्वारा मस्तकाभिषेक होना प्रसिद्ध है।
(१) सबसे पुराना हवाला लेख नं. २५४ (१०५) ता. १३९८का है । तब पंडिताचार्यने सात दफे अभिषेक कराया था।
(२) कवि पंचइना कहते हैं कि शांत वर्णीने १६१२में किया।
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