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१८०] प्राचीन जैन स्मारक । देशीगण पुस्तकगच्छ श्रीमुनि नयकीर्ति और भानुलीतिके शिष्यपर गड़े मल्लिनाथने एक जैन मंदिर बनवाया।
(२४) नं० ७८ सन् १०२२ ई० । वेलूरूग्राम (कत्तल्टी होव्व ) में दुर्गादेवीके, पीछे तालाव किनारे एक पाषाणपर । शाका ९८४ में परगड़े हासनने जब गंग परमानदी कर्णाटमें राज्य कर रहे थे तब नए जैन मंदिरके लिये सीढ़ियां बनवाई।
(२५) ता० मलवल्ली-नं० ३० ता० ९०९ ई० । कलगिरि ग्राममें सरोवर तटपर एक पाषाणमें शाका ८३१ में। नंदगिरि व कुवलीलके स्वामी नीतिमार्ग परमानदी कौंगुणीवर्मा भट्टा के राज्यमें कनकगिरि तीर्थपरके जनमंदिरके लिये महाराजके सामने श्रीकनकसेन भट्टारककी सेवामें मानब्यूरने तिधेयूरमें कमरों आदिका सर्व कर प्रदान किया । - (२६) नं० ३१ सन् १ ११७ ई० । टिप्पूरमें पहाड़ीपर ग्रामके उत्तरपूर्व-होयसालवंशी विनयदित्यकी स्त्री कलयवरसी, उनका पुत्र एश्यंग, भार्या एचलादेवी उनके पुत्र हुए बल्लाल, विष्णु और उदयदित्य । विष्णुने देश विनय किया। गंगवंशी राजा मार भार्या माकनव्वे-पुत्र एचिराजा भार्या पाचिकव्वे-पुत्र महामंत्री और दंडनायक गंगराजा । इसने चोलराना इडियमाको व नरसिंहवर्माको भगाया। तलकाड़ व दूसरे प्रदेश विनय किये । महाराजाने तिप्परु ग्राम भेट दिया जिसे गंगने मूलसंघ कारगण त्रित्रिंकगच्छके मेघचन्द्र सिद्धांतदेवके चरणों में भेट किया । संस्कृत लेख शिलालेख नं. १०५ सन् ११८३ ई० तिरुमकुदल नरसीपुर ता० में जो (नं० ११ )में पीछे दिया हुआ