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________________ (१६) नोट-इस लेखमें श्रीयुत रामास्वामी अय्यनगरने जो समालोचना जैनधर्मकी की है वह किसी अंशमें यथार्थ नहीं है क्योंकि नो जैनधर्मकी शिक्षा जैनशास्त्रोंमें जैन गृहस्थोंके लिये बताई है वह सर्व देश सर्व कालके लिये आचरणमें आसक्ती है और उससे कोई बाधा किसी लौकिक व सामाजिक उन्नतिमें नहीं पड़ सक्ती है। जिस धर्मके माननेवालोंमें सच्चा ज्ञान व त्याग कम होनाता है व सांसारिक वासना घर कर जाती है उसी धर्मके ऊपर दूसरे धर्मवालोंका आक्रमण होता है और वे परास्त हो जाते हैं। यही कारण दक्षिणमें जैनधर्मके हमका भी हुआ । शंकराचार्यने बौद्धधर्मके माननेवालोंको भारतसे बिलकुल निकाल ही दिया । यद्यपि जैनधर्मियोंकी भी बहुत क्षति पहुंचाई परंतु उनका बल मात्र निर्बल होसका, उसका विध्वंश न होसका । वादानुवाद, जैनाचार्य स्याहादके बलसे विजयी ही रहे परन्तु अन्य पड़यंत्रोंसे मैन राना अनेन हुए तब प्रना भी अजैन हुई । जैनधर्मकी शिक्षाका कोई भी दोष नहीं हो सक्ता है, जिसे विद्वान् लोग जैन प्राचीन व अर्वाचीन ग्रन्थोंको पढ़कर समझ सक्ते हैं। ब्र. सीतल ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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