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प्राचीन जैन स्मारक |
मौर्य राज्यमें गर्भित थे । अशोकने जब अपने एलची और देशों में भेजे थे तब महिषमंडल (मैसूर) और वनवासी ( मैसुरके उत्तर पश्चिम ) में भी भेजे थे। ये दोनों शायद उसके राज्यकी हद्दके ठीक बाहर होंगे । पश्चात् मैसूरका उत्तरी भाग अंधवंश या शतबाहन वंशके आधीन आगया । इस शतवाहमसे शालिवाहन संवत् प्रसिद्ध हुआ है जिसका प्रारम्भ सन् ई० ७८ से होता है । इनका शासनकाल सन् ई० से दो शताब्दी पूर्वसे दो शताब्दी पीछे तक है । इनका राज्य पूर्व से पश्चिम तक सम्पूर्ण दक्षिण में फैल गया था । इनकी मुख्य राज्यघानी कृष्णा नदीपर धनकटक या धरणीकोटा थी परन्तु पश्चिम की ओर इनका मुख्य नगर गोदावरी नदीपर पैंथन था । मैसूर में जो राजा राज्य करते थे उनका नाम शतकरणी प्रसिद्ध था ।
कादम्बवंश और पल्लव वंश - अंध्रवंश के पीछे उत्तर पश्चिममें कादम्बोंने, तथा उत्तर पूर्व में पलवोंने राज्य किया । कादम्बोंका जन्मस्थान स्थानगुंडुर ( शिकारपुर ता० में तालगुंड कहलाता है ) था तथा पल्लवोंका कांची या कंजीवरम मुख्य राज्यस्थान था । पल्लवोंका राज्य टुन्डाक या टुन्डमंडल ( मैसूर के पूर्वका मदरास हाता) कहलाता था। इन्होंने महाबली या बाण वंशजोंको हटा दिया था । ये महाबली लोग अपनी उत्पत्ति बलि या महाबलिसे बताते हैं तथा इनका संबंध महाबलिपुर से था (मदरासके तटपर जहां ७ प्रसिद्ध मंदिर हैं ।
नौमी शताब्दी से पल्लवोंका नाम नोलम्ब प्रसिद्ध हुआ । उनका राज्य नोलम्बवाड़ी ( चीतलढुग जिला ) कहलाने लगा जहांके निवासी अब भी नोलम्ब कहलाते हैं ।