________________
१३२ ]
प्राचीन जैन स्मारक |
५ को श्री अर, मल्लि तथा सुव्रतकी मूर्ति चारों तरफ स्थापित कीं व पश्चिम की ओर २४ तीर्थंकर स्थापित किये तथा अभिषेकके लिये तेलपारू गाम दिया । यह लेख इंद्र वज्ञाछंद में स्वंय महाराजने रचकर लिखा है | प्रारम्भ में वीतराग शब्द है ।
जिला चिंगलपेट |
वल्लिमलाई - यहां पूर्वओर जैन मूर्तियोंके दो समूह हैं। पहले समूह के नीचे ४ कनड़ी लेख हैं, जिनका भाव यह है ।
नं ० १ - ( गंगवंशी ) शिवमारके परपोते, श्रीपुरुषके पोते, वरण विक्रमके पुत्र राजमल्लने एक वस्ती (जिनमंदिर) बनवाई | नं० २ - जैनाचार्य आर्यनंदिन प्रतिष्ठा कराई ।
नं ० ३ - वाणराय आचार्य के शिष्य की मूर्ति = स्वस्ति श्री वाणराय गुरुगल अप्प भवनंदि अट्टारक शिष्येर अप्पदेवसेन भट्टारक प्रतिष्ठा ।
नं० ४ - स्वस्तिश्री बालचंद्र भट्टारक शिष्य आर्यनंदि भट्टाकाशिद प्रतिमे गोवर्द्धन भट्टारके पेदमवरे - यह प्रतिमा गोवर्द्धन गुरुकी है | देखो Epigraphica Indica Vol.IX.
P. 140-142.
जिला अनंतपुर ।
हेमवती - नीलंबलोगों की राज्यधानी पेंजरू या है जेरुमें थी जिसको तामील भाषा में : पेरमचेरू कहते हैं । यही हेमवती नगरी है जो तालुका मदुक सिरा में सीरनदी के तटपर है। इस नगरीका नाम बहुतसे शिलालेखों में आता है । यह बहुत ही प्रसिद्ध जगह है। नवीं शताब्दी में नोलम्ब राजाओं का विवाह सम्बंध गंगवंशी राजाओंसे होता था । नोलम्बाधिराजने नीतिमार्ग गंगमहाराजकी छोटी बहिन जायको विवाहा था । (देखो Mysore II. P. 163. )