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मदरास व मैसूर प्रान्त | [ १०७ मालय में (४) तिरुमंगलम ता० में कोवितन्कुलम और कुषनपत्तनमें । इस जिलेमें छोटी २ पहाडियोंपर चट्टान पर ऐसे स्थान खुदे मिलते हैं जो ६ या ७ फुट लम्बे व २ या ३ फुट ऊंचे हैं। इनको रैयत पंच पांडव दुक्कई (पांच पांडवोंके शयन स्थान ) के नामसे पुकारती है । कई स्थानोंमें जैनमूर्तियोंके निकट ऐसे स्थान देखे जाते हैं इसलिये बहुत करके ये सब स्थान जैन साधुओंके निवासके स्थान होने चाहिये ।
यहांके मुख्य स्थान |
(१) अनइ मलड़ - एक पहाड़ी २५० फुट ऊंची परन्तु दो मील लम्बी | ता० मदुरा - यह मदुरा शहरसे ६ मील है। सड़क पहाड़ीके नीचे नरसिंह पेरूमलका मंदिर है । ऐसा प्रसिद्ध है कि यह पहले जैनमंदिर था। अब वहां कोई चिह्न जैनका नहीं है ! कुछ दूर दक्षिण पश्चिम पहाड़ीसे निकलती हुई खास चट्टान के पास अखंडित जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां बड़े पाषाण पर अंकित हैं । नीचे गुफा है जहां पहले जैन साधुगण ध्यान करते थे । यह बहुत सुन्दर स्थान है - इस बड़े पाषाणक दोनों ओर जैनतीर्थकरकी प्रतिमाएं हैं। उत्तर में एक बैटे आसन जनतीर्थंकर है,
इनमें १० फुट लम्बी
दक्षिण में मूर्तियां हैं । ये सब नग्न हैं । व २ फुट ऊंची जगह घिरी है । यहीं आठ शिलालेख तामील बट्टे लुह भाषा में हैं - ग्रामवाले इनको कन्निमार कहके पूजते हैं और इस स्थानको कन्निमारकोविल कहते हैं । और भी गुफाएं हैं। हम ता० १५ मार्च १९२६ को श्रीयुत वर्द्धमान मुंडेलियर तिरुवल्लर निवासीके साथ मदुरासे मोटरपर दर्शनको आए । पहाडीके:
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