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प्राचीन न..
माचीन जैन स्मारक। बहु भाग बनाया था। १७ वीं शताब्दीके मध्यमें चोकनाथने राज्यधानी मदुरासे त्रिचिनापलीमें बदली ।
पुरातत्त्व-कई इतिहाससे पूर्वके समाधिस्थान (Kistvaens) पेरम्बतूर तालुके में हैं वहां कुछ रोमके सिक्के मिले हैं। बहुत प्रसिद्ध स्मारक त्रिचिनोपली पहाड़ीपर, श्रीरंगममें व गंगई कुंदपुरम् तथा समयपुरम्में हैं।
जैन प्रभाव-निलेभरमें जनियोंके स्मारक फैले हुए हैं। जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियां नीचे लिखे स्थानोंपर पाई जाती हैं(१) तालुका त्रिचिनापलीमें-(१) बेल्लनर, (२) पुलम्बादी, (३)
पेट्टइवात्तलई, (४) तथा पेरुगमनीमें । (२) तालुका पेरम्बलूरमें-(१) पारवई, (२) व चालूरमें । (३) ,, उदइयूर पालइयम्में-(१) विक्रनम् , (२) पैयतिरुको
नम्, (३) व जयकुन्द-चोलपुरम्में ।
पलयसंगदम्में उसी तालुकेमें कलित्तलइ सरोवरके निकट एक सुन्दर उठी हुई मूर्तियोंकी कारीगरी चट्टानपर खुदी है । यह जैनियोंकी है । पुडुक्कोहई राज्यमें नार्त्तमलईमें खुदे हुए स्तंभों सहित पहाड़में कटी गुफाएं जैनियोंकी कही जाती हैं।
मुख्य स्थान । (२) कुलित्तलई-रेलवे प्टेशन (त्रिचिनापली एरोड बाञ्च)से उत्तर दो मील-एक पहाडी है जिसपर एक जैन मूर्ति खुदी हुई है।
(२) महादानपुरम्-कुलित्तलईसे पश्चिम (मील । यहां कुछ जैन स्मारक हैं-बड़े किलेके व सुन्दर सरोवरके ध्वंश हैं। ये जैनियों के प्राचीन प्रभावको प्रगट करते हैं । परवसेन् गदममें जैन ध्वंशस्थान हैं।