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प्राचीन जैन स्मारक ।
घर्मतीर्थे तत्साक्षात्समाराध सकलगुणग रिंमंगौतममहर्षिचंदनार्य्यका श्रेणिक महामंडलेश्वर चेंलिनीप्रभृतिऋप्यार्जिका श्रावका विकाभेदचतुर्विध संघ परम्परायाति श्लाघनीयगुण संघ श्रीमूलसंघ संगे भूर्भुवस्वर्भेदात् त्रैविध्यामात्मसात् कुर्वाणस्य लोकस्य मध्यमध्य सिमे मध्यमलोके तन्मध्यवर्तिनो लक्षयोजनोदयस्य सुदर्शनमेरोर्दक्षिणभागे षड्विंशति पंचशतयोजनयो जनैकविंशति षट्टभाग विस्तारो ऽनादिसिद्ध भरतव्यपदेश भरतक्षेत्रविजयाई गंगा सिंधु प्रभृति विहित षटूवडमंडिते त्रिषष्टिशलाका पुरुषप्रभृत्यार्य जनसमुत्पत्तिपवित्रितार्यखंडे तथावस्थिताऽयोध्यायां दक्षिणेन स्थिते पशु धान्य हिरण्य कुप्यादि समृद्धिवर्णनीय वर्णाश्रमाकीर्णचौलदेशे धार्मिक जन समाज सततविधीयमान विविधपुण्योत्सवनि कराकरे अस्मिन् दीपंगुडि अभिधान आमे वीतदोषादिसंगत्वाद्वीतरागत्वं निरस्तनित्रिंशत्वादपास्तद्वेषत्वं तदुभयनिमित्तनिश्चलध्यानैकतानत्वम् तत्कारणकर्मक्षय सर्वज्ञत्वादि गुणं साक्षात् कथयंत्यामिव भगवत् श्रीमदादीश्वरस्वामी प्रति नाम दीपनाथस्वामीसन्निधौ श्रीमतं नोर ( नोट- यहांसे तामीलमें हैं ) वासी रामपुरके जमीदार चिह्न स्वामी मुडैलियरने प्रमुदित वर्ष में गर्भग्रहविमान, अंतराल, महामंडप, मुखमंडप, कावनकालमंडप यदि जीर्णोद्धार कराया। महामंडपमें सफेद पत्थर बैठाए । सिंहासन बलिपीठ नए बनवाये | गर्भग्रह विभागपर शिवर ताम्रकलश 1 चढ़ाया । रसोईघर बनवाया । मठ आदि ठीक कराया । कोट ठीक कराया । श्री पार्श्वनाथ व वाहुबलिकी मूर्ति बनवाई |
उत्तर देशवासी श्रीमत् देवमान्य श्रीमदभिनव आदिसेन भट्टारकस्वामीं बुलाए गए । बर्द्धमान मोक्ष गताब्दे अष्टत्रिंशदधिक