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प्राचीन जैन स्मारक |
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मानके पूजा जाता है । ग्राममें एक पाषाण है जिसके अक्षर पढ़े नहीं जाते | इसके द्वारा पशुओंके रोग अच्छे हो जाते हैं । पोलूर तालुका ।
यहां ८४६ जैनी हैं |
(१७) तिरुमलाई - पोलरसे उत्तर पूर्व ७ मील, देविकापुरम्से ५ मील । अरनीसे १९ मील | कटपादी बिलपुर लाइन के मादिमंगलम् ष्टेशन से २ मील । यह जैनियों का पूज्य बहुत प्रसिद्ध पर्वत है । हमने इस पर्वतकी यात्रा सी० एस० मल्लिनाथजीके साथ ता० २१ मार्च १९२६को की थी । यह पर्वत थोड़ा ऊंचा बहुत स्वच्छ चट्टान सहित है। यहां ग्राम ५ उपाध्याय जैनियोंके घर हैं। मुख्य भूपाल उपाध्याय तथा शिखामणि शास्त्री व देवराज ऐय्यर हैं । पर्वतके ठीक नीचे बहुत प्राचीन मंदिर व सुन्दर गुफाएं हैं। एक गुफार्मे चार फुट ऊंची श्री बाहुबलि, श्री नेमिनाथ, श्री पार्श्वनाथ व कूष्मांडी देवीकी मूर्ति है। मंदिर में श्री नेमिनाथ, बाहर आदिनाथजी २ | हाथ ऊंची पल्यंकासन मूर्ति है । गुफा बहुत गहरी है । यहां जैन साधुगण विद्याभ्यास करते होंगे क्योंकि भीत व छतोंपर अनेक चित्र समवशरण, ढाईद्वीप व जम्बूद्वीप आदिके हैं । इसी हातेमें श्रीगद्यचि - न्तामणि ग्रन्थके कर्ता श्री मुनि वादीमसिंहजीकी समाधि है। एक दूसरा मंदिर है उसमें मिट्टीकी श्री वर्द्धमानस्वामीकी मूर्ति २ हाथ ऊंची बहुत सुंदर है। सीढ़ियाँ चढ़के पर्वतके ऊपर श्रीनेमिनाथजीकी कायोत्सर्ग मूर्ति १६ ॥ फुट ऊँची बहुत मनोज्ञ है । दर्शन करके जो आनंद आता है वह वचन अगोचर है और ऊपर जाकर एक मंदिरमें श्री पार्श्वनाथजी की मूर्ति कायोत्सर्ग १ ॥ हाथ है । पर्वतके