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प्राचीन जैन स्मारक |
स्थापित कर दी है । यह गुफा वास्तवमें जैन साधुओंके तपकी भूमि थी । मदरास एपिग्राफी में इन दोनों जैन गुफाओंके चित्र सी नं० १६, १७ व १८ हैं । शिलालेखोंका भाव नीचे है जो इपिफिका इंडिका जिल्द 8 में दिया है । पृ० १३६ । इस पंच पांडवमलई का दूसरा स्थानीय नाम तिरुप्पामली या पवित्र दुग्ध पहाड़ी है । यहां जैनोंकी गुफाए हैं । एक लेख तामील भाषा में वीरचोल राजाका है । ११ लाईन हैं । अपनी रानी लाट महादेवीकी प्रार्थनापर वीर चोल लाट पेरुरैयनने, जो ऐयूरका स्वामी था कपूरका खर्च व विना आज्ञा चलनेवाले करघोंपर लगनेवाला कर तिरुप्पमलई के मंदिरके देवके लिये दिया तथा एक गांव कूरगणपदी ( वर्तमान कुरम्बदी ) दिया जो इस पर्वतसे २ मील है । चोलराजा राजरानके राज्यमें जो सन् ९८४-८९ में गद्दी पर बैठा था यह वीर चोल राजराजाके आधीन था । यह लेख लिखा गया राजराज केशरीवर्तन के ८वें वर्षके राज्य में । इस पहाड़ीसे १ मील दूर जो विलाप्पाक्कम नामका ग्राम है वहां अब भी देशी कपड़ेका बहुत व्यापार है । कई करधों चलते हैं ।
नोट- यह लेख प्रगट करता है कि राजा वीर चोल जैनी था व दसवीं शताब्दी में करघोंका बहुत प्रचार था ।
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(४) मामन्दूर यादूसीमामन्दूर पहाड़ी गुफाएं । यह कंजी - वरमसे ७ मील है । दो छोटी पहाड़ियोंपर एक सरोवरका तट है। इनके दक्षिणी भाग पूर्वीय मुखपर जैनियोंकी गुफाएं हैं जो साधुओंके ध्यानके स्थान हैं। ये भी पंच पांडवमलईके समान प्रसिद्ध हैं । चार गुफाओंमें दो पासपास हैं । हरएक में दो स्तंभ हैं। दोनों में