________________
$
你
veer at at deer उसके विकसित स्वरूप को विद्यापति ने अब और देसिन aunt (देशी वचन) कहा है। प्राकृत के विकसित रूप को ही वस्तुतः अपभ्रंश कहा गया है । जैसे पातंजलि 1150 ई. पू.) ने महाभाष्य में सर्वप्रथम अपभ्रंश शब्द का प्रयोग किया पर वह प्रयोग प्रपाणिनीय शब्दों के लिए हुआ है । भामह और दण्डी (7 वीं शती) तक आते-प्राते वह ग्राभीर किंवा प्रशिष्ट समाज की बोली के रूप में स्वीकार की जाने लगी। उद्योतन ( 8वीं पाती) और स्वयंभू के काल तक अपक्ष ने एक काव्य शैली और भाषा के रूप में अपना स्थान बना लिया ।
आठवीं शती के बाद तो अपभ्रंश भाषा के भेदों में गिनी जाने लगी । रुद्रट, राजशेखर जैसे कवियों ने उसका साहित्यिक समादर किया । पुरुषोत्तम (11 वीं शती) के काल तक पहुंचते-पहुंचते उसका प्रयोग शिष्ट प्रयोग माना जाने लगा । हेमचन्द ने तो अपभ्रंश की साहित्य समृद्धि को देखकर उसका परिनिष्ठित व्याकरण ही लिख डाला । अपभ्रंश अथवा देशी भाषा की लोकप्रियता का यह सर्वोत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है ।
वि. स. 1400 के बाद कवियों को प्रेरित करने वाले सांस्कृतिक आधार में भिन्न्य दिखाई पड़ता है । फलस्वरूप जनता की मनोवृत्ति और रूचि में परिवर्तन होना स्वाभाविक है । परिस्थितियों के परिणामस्वरूप जनता की रुचि जीवन से उदासीन और भगवद्भक्ति में लीन होकर भ्रात्म कल्याण करने की घोर उन्मुख थी । इसलिए इस विवेच्य काल में कवि भक्ति और अध्यात्म संबंधी रचनायें करते दिखाई देते हैं । जैन कवियों की इस प्रकार की रचनायें लगभग वि.सं. 1900 तक मिलती हैं । अत: इस समूचे काल को मध्यकाल नाम देना ही अनुकुल प्रतीत होता है । प्रा० शुक्ल ने भी प्रादिकाल (वीरगाथाकाल), पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल ), उत्तरमध्यकाल ( रीतिकाल ) और प्राधुनिककाल नाम रखे हैं । प्रा० शुक्ल ने जैन कवियों की भक्ति और अध्यात्म संबंधी रचनाओं को नहीं टटोला या उन्हें देखने नहीं मिली । अतः मात्र जैनेतर हिन्दी कवियों की श्रृंगारिक और रीतिबद्ध रचनायें देखकर ही मध्यकाल के उपर्युक्त दो भाग किये । चूंकि जैन कवियों द्वारा रचित जैन काव्य की भक्ति रूपी जारा वि. सं. 1900 तक बहती है । प्रत: हमने इस सम्पूर्णकाल को मध्यकाल के नाम से प्रभिहित किया है । यद्यपि इस काल में जैन कवियों ने रीति संबंधी (लक्षण ग्रंथ अंगर परक चित्रण, नायक-नायिका भेद भादि) ग्रंथ भी रखे हैं परन्तु इसकी संख्या तुलनात्मक दृष्टि से नगण्य ही है। प्रस्तुत प्रबन्ध में हमने मध्यकाल की इसी सीमा को स्वीकार किया है।
सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
सम् उपसर्ग पूर्वक 'कृ' धातु के संयोग से बने संस्कृति शब्द का अर्थ है, सम्यक प्रकार से निर्माण अथवा परिष्करण की क्रिया । संस्कार, वातावरण और