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रूपासक्तिमय भक्ति के माध्यम से भक्त भगवद दर्शन के लिए लालायित रहता है। वह जिनेन्द्र का दर्शन करने में अपना जन्म सफल मामता है और ध्यान धारण करने से संसिद्धि प्राप्त करता है । उपाध्याय जयसागर को मादिनाथ के दर्शनों से अनिर्वचनीय मानन्द की प्राप्ति होती है। पद्म तिलक ने भी भाविनाथ को स्तुति की है जिससे समस्त मनोवांछित अभिलाषायें पूर्ण हो जाती हैं। मुनि जयलाल का मन प्रभु के दर्शन से हर्षित हो जाता है। वह राज ऋद्धि की आकांक्षा नहीं करता, बस, उसे तो पाराध्य के दर्शनों की ही प्यास लगी है। यह दर्शन सभी प्रकार के संकट मोर दुरित का निवारक है-'उपसमै संकट विकट कष्टक दुरित पाप निवारणा ।' मनोवांडिस चिन्तामरिण है। जिसे वह अच्छा नहीं लगता वह मिथ्या दृष्टि है । जिन प्रतिमा जिनेन्द्र के समान है । उसके दर्शन करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं
जिन प्रतिमा जिन सम लेखीयइ । ताको निमित्त पाय उर अन्तर राग दोष नहि देखीयइ ।। सम्यग्दृष्टि होइ जीव जे, जिस मन ए मति रेखीयइ । यहु दरसन जांतून सुहावइ, मिथ्यामत सेखीयइ । चितवत चित चेतना चतुर नर नयन मेष जे मेखीयइ । उपशम कृपा ऊपजी अनुपम, कर्म करइ न सेखीयह ।। वीतराग कारण जिन भावन, ठवणा तिरण ही पेखीयइ ।
चेतन कवर भये निज परिणति, पाप पुन्न दुइ लेखीयइ ।' विद्यासागर ने 'निरख्यो नयने जब रसायन मन्दिर सुखकर' लिखकर भगवान के दर्शन का मानन्द लिया है। बनारसीदास ने जिन बिम्ब प्रतिमा के माहात्म्य का इस प्रकार वर्णन किया है
1. सीमन्धर स्वामी स्तवन, विनयप्रभ उपाध्याय, पृ. 120-24. 2. चतुर्विशती जिनस्तुति, जेन गुर्जर कविप्रो, तृतीय भाग, पृ. 1479. 3. गर्भ विचार स्तोत्र, 27 वां पद्य 4. विमलनाथ, जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 94. 5. पार्वजिनस्तवन-गुणसागर, जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 95. 6. गोड़ी पार्श्वनाथ स्तवन-कुशललाभ, जैन गुर्जर कविमो, प्रथम भाग, पृ. 216
अन्तिम कलश. 7. कुअरपाल का पद । कवि की अनेक रचनायें सं. 1684-1685 में लिखे
एक गुटके में निबद्ध हैं जो की श्री भगरचन्द नाहटा को उपलब्ध हमा था। भूपाल स्तोत्र छप्पय, दूर्णी, जयपुर का जैन शास्त्र भण्डार, हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, तु. 389.
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