________________
तिपयारो सो अप्पा परयंतरवाहिरी देहाएं।
तथ्य परो भाइज्जइ, अंतोषाएग पएहि पहिरप्पा ।। जैन रहस्यवाद के इतिहास के मूल-सर्जक और प्रस्थापक प्राचार्य न्दकुन्द, जिनके ग्रंप भास्मा के मूल स्वरूप को प्राप्त करने का रहस्य प्रस्तुत की है। जैन-दर्शन में हर प्रात्मा में परमात्मा बनने की शक्ति निहित है इस दृष्टि से बहा भारमा के तीन भेद बतलाये हैं-अन्तरारमा, बहिरात्मा और परमात्मा । पचन्द्रियों से परे मन के द्वारा देखा जाने वाला "मैं हूँ" इस स्वसंवेदन स्वरूप मन्तरात्मा होता है । इन्द्रियों के स्पर्शनादि द्वारा पदार्थशान कराने वाला बहिरात्मा है और शामावरणादिक द्रव्य कर्म, रागद्वेषादिक भावकर्म, शरीरादिक नोकर्म रहित अनन्तज्ञानादिक गुण सहित परमात्मा होता है। मन्तरात्मा के उपाय से बहिरात्मा का परित्याग करके परमात्मा का ध्यान किया जाता है। यह परमात्मा परमनद स्थित, सर्व कर्म विमुक्त, शाश्वत और सिद्ध है
"तिपयरो सो अप्पा परमंतरवाहिरो हु बहीणं । तत्थ परो भाइज्जइ अंतोवारण चयहि वहिरप्पा ॥ "अक्खाणि बहिरप्पा अन्तर प्रप्पाहु अत्थसंकल्पो।
कम्मकलंक विमुक्को परमप्पा भण्णए देवो । इस दृष्टि से कुन्दकुन्दाचार्य निस्संदेह प्रथम रहस्यवादी कवि कहे जा सकते है । उन्होंने समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार मादि ग्रन्थों में इसका सुन्दर विश्लेषण किया है । ये अन्य प्राचीन जैन मंग साहित्य पर प्राधारित रहे हैं जहां प्राध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने का स्वर गुजित होता है । प्राचारांग मूल प्राचीनतम अंग प्रन्थ है। यहां जैन धर्म मानव धर्म के रूप में अधिक मुखर हमा है। वहां 'पारिएहिं" शब्द से प्राचीन परम्परा का उल्लेख करते हुए समता को ही धर्म कहा है-समियाए धम्मे पारिएहिं पवेदिते ।
पाचारांग का प्रारम्भ वस्तुतः "इय मेगेसिंगो सण्णा भवर" (इस संसार में किन्हीं जीवों को ज्ञान नहीं होता) सूत्र से होता है इस सूत्र में प्रात्मा का स्वरूप तवा संसार मे उसके भटकने के कारणों की पोर इंमित हुमा है। 'वंशा' (वेतन) बन्द अनुभव और ज्ञान को समाहित किये हुये हैं। अनुभव मुख्यतः सोसह प्रकार के होते है-पाहार, भय. मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, शोक, मोह, सुख, दु:ख,
1. मोक्सपाहुड़कुन्दकुन्दाचार्य 4
भ. पार्थ के पंच महावत-बनेकांत, वर्ष 30, किरण 1, पृ. 23-27.बून मार्च 1977 2. मोक्सपाहर