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________________ i तुम्हें यहां से उठा ले जायेगा । उस समय यह सारा वैभव यहीं पड़ा रह जायेगा । प्रांधी-सी गों। संघ मुख चला जायेगा । वह बराल काल की कुमरे सदैव तुम्हारे सिर पर लटकती रहती है। श्रम तो वृद्धावस्था भी मानवी । इस समय तो कम से कम मन में यह सूभा भा जाय और जन्म मरण की बात की सोचकर संसार के स्वभाव पर विचार कर ले : जिय मन हैं । वा दिन को करं सोच वनज किया व्यापारी तूनें टांडा लादा भारी । tet पूजी जुम्रा खेला भाखिर बाजी हारी रे || माखिर बाजी हारी, कर ले चलने को तैयारी | इक दिन डेरा होयगा वन में || वा दिन ||1| 1. 2. झूठे नैना उलफत बांधी, किसका सोना किसका चांदी । इक दिन पवन चलेगी प्रांधी, किसकी बीबी किसकी बांदी ॥ नाहक चित्त लगा वै धन में || वा दिन ||21| मिट्टी सेती मिट्टी मिलियो, पानी से पानी । मूरख सेती मूरख मिलियो, ज्ञानी से ज्ञानी ॥ यह मिट्टी है तेरे तन में ॥ कहत बनारसि सुनि भवि प्राणी, यह पद है निरवाना रे । जीवन मरन किया सौ नाही, सिर पर काल निशाना रे ।। सूझ पड़ेगी बुढ़ापेपन मे ॥ बा दिन 1412 वा दिन 1131 संसरण का प्रबलतम कारण मोह और प्रज्ञान है जिनके कारण जीव की राग द्वेषात्मक प्रवृत्तियां उत्पन्न होती है। ये प्रवृत्तियां हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह की भोर मन को दौड़ाती है । मन की चंचलता और वचनादि की असंयमता से शुभ अथवा कुशल कर्म भी दुःखदायी हो जाते है । मोह के शेष रहने पर कितना भी योगासन प्रादि किया जाये पर व्यक्ति का चित्त प्रात्म-दृष्टि की मोर नही दौड़ता । श्रुताभ्यास करने पर भी जाति, लाभ, कुल, बल, तप, विद्या प्रभुता और रूप इन पाठ भेदों से जीव अभिमान ग्रस्त हो जाता है । फलत: विवेक जाग्रत नहीं होता और आत्मशक्ति प्रगट नहीं हो पाती। इसलिए बनारसीदास जीव पर कहकर कहते हैं :--- देखो भाई महाविकल संसारी दुखित धनादि मोह के कारन, राग द्वेष भ्रम मारी ॥ हिन्दी पद संग्रह, पृ. 55. वही, पृ. 57.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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