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________________ मशुभ घट गया, संशय रूपी शिविर समाप्त हो गया, शुभ-दल-पल्लव लहलहा पड़े, पतझर प्रारम्भ हो गई, विषयरनि- मालती मलिन हो गई, विरति-वेलि फैल गई, विवेक शfe निर्मल हुआ, ग्रात्म शक्ति-सुचन्द्रिका विस्तृत हुई, सुरति प्रग्नि ज्वाला जाग उठी, सम्यक्त्व- सूर्य उदित हो गया, हृदय कमल विकसित हो गया, कषायहिमगिरी गल गया, निर्जरा नदी में प्रवाह ना गया, धारणा-धारा शिव-सागर की भोर वह चली, नय पंक्ति चर्चरी के साथ ज्ञानध्यान- डफ का ताल बजा, साधनापिचकारी चली, संवरभाव-गुलाल उड़ा, दया-मिठाई, तप मेवा, शील- जल, संयमताम्बूल का सेवन हुआ, परम ज्योति प्रगट हुई, होलिका में भाग लगी, भाठ काठकर्म जलकर बुझ गये और विशुद्धावस्था प्राप्त हो गई । usereमरसिक बनारसीदास प्रादि महानुभावों के उपर्युक्त गम्भीर विवेचन से यह बात छिपी नही रही कि उन्होने प्रध्यात्मवाद और रहस्यवाद को एक माना है । दोनो का का प्रस्थान बिन्दु, लक्ष्य प्राप्ति तथा उसके साधन समान हैं। दोनों शान्त रस के प्रवाहक हैं । अतः हमने यहां दोनों को समान मानकर यात्रा की है। 85 "गूंगे का सा गुड़ " की इस रहस्यनुभूति में तर्क प्रप्रतिष्ठित हो जाता है-'कहत कबीर तरक दुइ साथै तिनको मति है मोटी' और वाद-विवाद की प्रोर से मन दूर होकर भगवद् भक्ति में लीन हो जाता है। उसकी अनुभूति साधक की श्रात्मा ही कर सकती है । रूपचन्द ने इसी को 'चेतन अनुभव घट प्रतिमास्यों,' 'चेतन अनुभव घन मन मीनों प्रादि शब्दो से अभिव्यक्त किया है । सन्त सुन्दरदास ने ब्रह्म साक्षात्कार का साधन अनुभव को ही माना है । 4 बनारसीदास के समान ही सन्त सुन्दरदास ने भी उसके मानन्द को 'अनिर्वचनीय' कहा है। उन्होंने उसे साक्षात् ज्ञान और प्रलय की अग्नि माना है जिसमें सभी द्वैत, द्वन्द घौर प्रपंच विलीन हो जाते हैं । 1. 2. बनारसी विलास : अध्यात्म फाग, पृ. 1 - 18. वाद-विवाद काहू सो नहीं मांहि, जगत थे न्यारा, दादूदयाल की वानी, भाग 2, पृ. 29. 3. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 36-37. 4. प्रभुभव बिना नहि जान सके निरसन्ध निरन्तर नूर है रे । उपमा उसकी अब कौन कहे नहिं सुन्दर चन्दन सूर है रे || सन्त सुधासागर, T. 586. सन्त चरनदास की वानी, भाग 2, पृ. 45. 5. 6. सुन्दर विलास, पृ. 164.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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