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अर्थात् आगेके मुनि अपने २ संघका-गणका गच्छका पक्ष धारण करेंगे, सबको एकरूप समझकर मार्गकी प्रवृत्ति नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार विचार करके उन्होंने जो मुनिगण गुफामेंसे आये थे, उनमेंसे किसी २ की नंदि और किसी २ की वीर संज्ञा रक्खी । नो अशोकवाटसे आये थे उनमेंसे किसीकी अपराजित और कि. सीकी देव संज्ञा रक्खी । जो पंचस्तृपोंका निवास छोड़कर आये थे, उनमें से किसीको सेन और किसीको भद्र बना दिया। जो महाशाल्मली (सेंवर ) वृक्षोंके नीचेसे आये थे, उन से किसीकी गुणधर
और किसीकी गुप्त संज्ञा रक्खी और जो खंडकेसर ( बकुल) वृक्षांकेनीचेमें आये थे उनसे किसीकी सिंह और किसीकी चन्द्र संज्ञा रक्खी । * ___ अनेक आचार्योंका ऐसा मत है कि, गुहासे निकलनेवाले नन्दि,
अशोक वनसे निकलनेवाले देव, पचस्तूपोंसे आनेवाले सेन बने भारी शाल्मलिवृक्षक नीचे निवास करनेवाले वीर और खंडकेसर वृक्षके नीचे रहनेवाले भद्र संज्ञासे प्रसिद्ध किये गये थे । *
इस प्रकारसे मुनिजनोंके संघ प्रवर्तन करनेवाले उक्त श्रीअई. हलि आचार्यके वे सब मुनीन्द्र शिप्य कहलाये। उनके पश्चात् *उक्त च--आयाती सन्धिवीरौ प्रकटगिरिगुहावासतोऽशोकवाटा
देवाश्चान्योऽपराादर्जित इति यतिपा सेनभद्राहयौ च । पञ्चस्तूप्यात्सगुप्ती गुणधरवृपभः शाल्मलीवृक्षमूला
निर्याता सिंहचन्द्रौ प्रथित गुणगणो केसरात्खण्डपूर्वात् ॥ १॥ तथा-गुहाया वासितो ज्येष्टा द्वितीयोऽशोकवाटिकात् । निर्याता नन्दिदेवाभिधानावाद्यानुक्रमात् ॥ १ ॥ पचस्तूप्यास्तु सेनानां वीराणा शाल्मलिद्रुमः । खण्डकसरनामा च भद्रः स (घ) स्य सम्मतः ॥२॥