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________________ गर पीछे श्रीपुष्पदन्त हुए। यहांतक समस्त श्रुते अव्यवहित प्रकाशित रहा और इसके आगे श्रीपुष्पदन्तके तीर्थके नौ कोटिसागर पूर्ण होनेमें जब चौथाई पत्य शेष रहा था तबतक श्रुतका प्रकाश रहा । इसके पश्चात् चौथाई पत्यतक श्रुतका विच्छेद रहा । अनन्तर श्रीशीतलनाथ अवतरित हुए. इन्होंने फिर श्रुतका प्रकाश किया और यह ६६२६००० वर्ष घाट ९९९९९०० सागरमें आघापल्य शेष रहा था तबतक रहा. इसके पश्चात् आधा पल्यतक विच्छेद रहा । अनन्तर श्रेयान् तीर्थकरने फिर श्रुतका प्रकाश किया। इनके निर्वाणके पश्चात् ५४ सागरमें पौनपल्य शेष रहा था तब फिर श्रुनका विच्छेद हुआ और वह पौनपल्यतक रहा । तदनन्तर श्रीवासुपूज्य तीर्थकर हुए । इन्होंने फिर श्रुतका प्रकाश किया । इनके निर्वाणानन्तर ३० सागरमें जब एक पल्य रहगया तब फिर श्रुतविच्छेद हुआ और वह एक पल्यतक रहा । अनन्तर श्रीविमलनाथ हुए । इन्होंने फिर श्रुतका प्रकाश किया । इनके तीर्थके ९ सागरमें जब एक पल्य रहा तब फिर श्रुतका विच्छेद हुआ और वह एकपल्यतक रहा। तत्पश्चात् श्रीअनन्तनाथ भगवानने फिर श्रुतकाप्रकाश किया। इनके निर्वाणके पश्चात् चार सागरमें पौनपल्य शेष रहनेपर पौनपल्यतक फिर श्रुतका विच्छेद रहा । अनन्तर श्रीधर्मनाथने फिर प्रकाश किया । इनके निर्वाणके पश्चात् पौनपत्यकम तीनसागरमें जब आधापल्य शेष रहगया तब फिर श्रुतका विच्छेद हुआ और वह आधा पल्यपर्यन्त रहा । अनन्तर श्रीशान्तिनाथतीर्थकर हुए । इन्होंने फिर श्रुतका प्रकाश किया । इनके पश्चात् आधा पल्य बीतनेपर श्रीकुन्थुनाथ, हजारकोटि वर्षघाट पाव
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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