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________________ ३५ कि यदि निषिद्ध ( उक्तलक्षण रहित ) पुरुष पूजन कर ले, तो राजा, देश, पूजन करनेवाला, और करानेवाला सब नाशको प्राप्त हो जावेंगे । इससे प्रगट है कि उन्होंने यह स्वरूप ऊंचे दर्जेके नित्यपूजकको भी लक्ष्य करके नहीं लिखा है । भावार्थ, इस स्वरूपका किसी भी प्रकारके नित्यपूजकके साथ नियमित सम्बन्ध ( लजूम) न होनेसे, यह किसी भी प्रकारके नित्य पूजकका स्वरूप या लक्षण नहीं है। बल्कि उस नैमित्तिक पूजनविधानके कर्तासे सम्बन्ध रखता है जिस पूजनविधानमें पूजन करनेवाला और होता है और उसका करानेवाला अर्थात् उस पूजनविधानके लिये द्रव्यादि खर्च करानेवाला दूसरा होता है। क्योंकि स्वयं उपर्युक्त श्लोकोंमें आये हुए, “कर्तृकारकयोः" "गृह्णीयात्" और "तथैव कर्ता च जनश्च कारकः” इन प. दोंसे भी यह बात पाई जाती है । “यत्नेन गृहीयात् पूजकं," "उक्तलक्षणमेवार्यः,” ये पद साफ बतला रहे हैं कि यदि यह वर्णन नित्य पूजकका होता तो यह कहने वा प्रेरणा करनेकी ज़रूरत नहीं थी कि पूजनविधान करानेवालेको तलाश करके उक्त लक्षणोंवाला ही पूजक (पूजनविधान करनेवाला ) ग्रहण करना चाहिये, दूसरा नहीं । इसीप्रकार पूजनफलवर्णनमें, "कर्तृकारकयोः" इत्यादि पदोंद्वारा पूजन करनेवाले और करानेवाले दोनोंका भिन्न भिन्न निर्देश करनेकी भी कोई ज़रूरत नहीं थी; परन्तु चूंकि ऐसा किया गया है, इससे स्वयं ग्रंथकारके वाक्योंसे भी प्रगट है कि यह नित्यपूजकका स्वरूप या लक्षण नहीं है । तब यह स्त्ररूप किसका है ? इस प्रश्नके उत्तरमें यही कहना पड़ता है कि पूजकके जो मुख्य दो भेद वर्णन किये गये हैं-१ एक नित्यपूजन करनेवाला और २ दूसरा प्रतिष्ठादि विधान करनेवाला-उनमेंसे यह स्वरूप प्रतिष्ठादिविधान करनेवाले पूजकका ही होसकता है, जिसको प्रतिष्ठाचार्य, पूजकाचार्य और इन्द्र भी कहते हैं । प्रतिष्ठादि विधानमें ही प्रायः ऐसा होता है कि विधानका करनेवाला तो और होता है और उसका करानेवाला दूसरा । तथा ऐसे ही विधानोंका शुभाशुभ असर कथंचित् राजा, देश, नगर और करानेवाले आदिपर पड़ता है। प्रतिष्ठाविधानमें प्रतिमाओंमें मंत्रद्वारा अ. हंतादिककी प्रतिष्ठा की जाती है । अतः जिस मनुष्यके मंत्रसामर्थ्यसे प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित होकर पूजने योग्य होती हैं वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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