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अर्थ - उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य, और ब्रह्मचर्य ये दश भेद मुनिधर्मके हैं ।
कोहुप्पत्तिस्स पुणो बहिरंगं जदि हवेदि सक्खादं । ण कुणदि किंचिवि कोहं तस्स खमा होदि धम्मोति
क्रोधोत्पत्तेः पुनः बहिरङ्गं यदि भवेत् साक्षात् ।
न करोति किञ्चिदपि क्रोधं तस्य क्षमा भवति धर्मः इति७१
अर्थ - क्रोधके उत्पन्न होनेके साक्षात् बाहिरी कारण मिलने पर भी जो थोड़ा भी क्रोध नहीं करता है, उसके उत्तमक्षमा धर्म होता है । कुलरूबजादिबुद्धिस तवसुदसीलेस गावं किंचि । जो णवि कुव्वदि समणो मद्दवधम्मं हवे तस्स ७२ कुलरूपजातिबुद्धिषु तपश्रुतशीलेषु गर्ने किञ्चित् ।
यः नैव करोनि समना मार्दवधर्मे भवेत् तस्य ॥ ७२ ॥
अर्थ - जो मनस्वी पुरुष कुल, रूप, जाति, बुद्धि, तप, शास्त्र, और शीलादिके विषय में घोड़ासा भी घमंड नहीं करता है, उसीके मार्दव धर्म होता है । मोत्तूण कुडिलभावं णिम्मलहिदयेण चरदि जो
१ कुल और जाति में इतना अन्तर है कि, कुल पिताके सम्बन्ध से होता है, और जाति माताके सम्बन्ध से होती है । किसी सूर्यवंशी राजाका एक पुत्र शूद्रा रानीके गर्भ से उत्पन्न हुआ हो, तो उसका कुल सूर्यवंश कहलायगा और जाति शूद्र कहलायगी ।