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अर्थ-पहले कहे हुए रागद्वेषादि परिणामोंको और सम्पूर्ण धनधान्यादि परिग्रहोंको छोड़कर जो व्रत, समिति, शील और संयमरूप परिणाम होते है, उन्हें शुभमन जानना चाहिये। संसारछेदकारणवयणं सुहवयणमिदि जिणुद्दिढे । जिणदेवादिसु पूजा सुहकायंत्ति य हवे चेट्टा ५५
संसारछेदकारणवचनं शुभवचन मिति जिनोद्दिष्टम् ।
जिनदेवादिषु पूजा शुभकायमिति च भवेत् चेष्टा ॥ ५५ ॥ __ अर्थ-जन्ममरणरूप संमारके नष्ट करनेवाले वचनोंको जिनभगवानने शुभवचन कहा है और जिनदेव, जिनगुरु, तथा जिनशास्त्रोंकी पूजारूप कायकी चेष्टाको शुभकाय कहते हैं। जम्मसमुद्दे बहुदो(स-वीचिये)दुक्खजलचराकिण्णे जीवस्स परिव्भमणं कम्मासवकारणं होदि॥५६।।
जन्मममुद्रे बहुदोषवीचिके दुःख जलचराकीर्णे ।
जीवस्य परिभ्रमणं कर्मास्रवकारणं भवति ॥ १६ ॥ __ अर्थ-जिसमें क्षुधा तृषादि दोषरूपी तरंग उठती हैं.
और जो दुःखरूपी अनेक मच्छकच्छादि जलचरोंसे भरा हुआ है, ऐसे संसारसमुद्र में कर्मोके आस्रवके कारण ही जीव गोते खाता है । संसारमें भटकता फिरता है। कम्मासवेण जीवो वूडदि संसारसागरे घोरे । जग्णाणवसं किरिया मोक्खणिमित्तं परंपरया ५७||