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कर्ता श्वेताम्बरीय ), पनगुप्त धनंजय ( दशरूपकके कर्ता ), पनिक, हलायुध, आदि अनेक विद्वान् थे। यह स्वयं विद्वानथा परन्तु सुभाषितावली आदि ग्रन्थोमें थोड़ेसे श्लोकोंके सिवाय और कोई स्वतंत्र प्रन्य उसका आजकल नहीं मिलता है । हो सकता भ, कि प्रश्नोत्तररत्नमालाके कर्ता यही हों, परन्तु प्रशस्तिके श्लोकमें जो " विवेकमे राज्य छोडनेवाले " ऐसा पद दिया है. वह इसके विषयमें घटिन नहीं हो सकता। क्योंकि यह राज्य छोड़के दीक्षित नहीं होने पाया था और कल्याणके चालुक्य ( सोलंकी ) राजा तैलपपर चढाई करनेके समय केद होकर मारा गया था । अतएव प्रश्नात्तररत्नमालाका कर्ता मुंज नहीं हो सकता। ___ अब गएकटवंशीय प्रथम अमोघवर्षके विषयमें विचार कीजिये । यह दक्षिणके वनवास देशका गजा था और बंकापुर इमकी राज धानी थी। यह बड़ा भारी विद्वान् थी और कविगज इसकी उपाधि थी । इसका बनाया हुआकविराजमार्ग नामका एक अलंकारग्रन्थ कर्णाटकी भाषामें मिलता है । इसने ६० वर्ष लगभग गज्य करके अपने पुत्र कृष्णराजको (अकालेवर्षको राज्य देकर जिनदीक्षा ले ली थी।
, वंकापुरे जिनेन्द्राधि सरोजे दिन्दिरोपमः । अमोघवर्षनामा न्महागजा महोदयः ।। ( पाश्चाभ्युदयकान्यकी मुबोधिका टीका । )
२ अकालवर्ष शक संवत् ६२० में जब कि जिनमनके शिष्य श्रीगुणभद्राचार्यने उत्तर पुराण बनाया था. विद्यमान था । उन्होंने उत्तर पुगणकी प्रशस्तिमें लिम्बा है:----
अकालवर्षभपाले, पालयत्यखिलामिलाम् । तम्मिन् विध्वस्तनिःशेषद्विषि वीभ्रयशोजुषि । बनवासदेशमाखलं भुन्नति निष्कण्टकं सुखं मुनिग्न् । तपितृनिजनामकृते ख्याते बडापुरेष्वाधिक ॥