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मिला दिये हैं परंतु मिलानेवालेने बड़ी गलती की है कि, उनको आर्याछन्दमें नहीं बनाया । प्रशस्तिके लोकके स्थानमें दोनोंने ये रक्खा है, जिससे भी आभास होता है कि, इसमें जालसाजी की गई हैं । यदि शंकराचार्य और शुकदेव ही यथार्थ बनानेवाले होते. तो वे इस छोटीसी कवितामें अपना नाम पद्यही देते.
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में देनेकी आवश्यकता नहीं थी । क्योंकि ऐसी कविताओं में जिन्हें कि लोग कंठस्थ रखते हैं, गद्यमें लिखनेकी परिपाठी कम है । तीसरे अधिकारी श्वेताम्बरी भाई हैं वे इसे अपने आचार्य विमलदाससूरिकी बनाई हुई बतलाते हैं और प्रशान्तिमें नचे लिम्ब हुआ लोक पढते हैं.
चिता सितपटगुरुणा विमला विमलेन रत्नमालेव । प्रश्नोत्तरमालेयं कंठगता किं न भूषयति ॥
इस प्रतिके सिवाय उनके पास और कोई प्रमाण श्वेताम्बरीब आचार्यकी कृति सिद्ध करनेका नहीं है। शेष २८ लोक व ज्यांक त्यो मानते है। आचार्य विमलदास कब हुए, उन्होंने कॉन २ अन्ध बनाये और उन ग्रन्थोंमें उन्होंने इस कविताका जिकर
१ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता प्रश्नोत्तरमाला समाप्ता । ( राजा राजेन्द्रलालमित्र संग्रहीत हस्तलिखित संस्कृतपुस्तकोंकी सूचि जिल्द २ पृष्ट ३५५ और बम्बईकी छपी हुई अनेक आवृत्तियां )
इति श्रीशुकयतीन्द्रविरचिता प्रश्नोत्तरमाला समाप्ता । ( बंगाल एशियाटिक सुसायटीका जनरल, जिल्द १६ भाग २ पृष्ट १२३५) २ इंडियन एण्टिकेरी जिल्द १९ पृष्ठ ३७८ और काव्यमाला सतगुच्छक पृष्ट १२३ ।