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________________ जो चढ़ी हुई सामग्री लेनेवाला और निर्मास्य भक्षण करनेवाला ह, स्वयं वीरभगवानकी प्रतिमाको उठाकर रथमें विराजमान करता है। __यदि शूद्रोंका पूजन करना असत्कर्म (बुरा काम) होता और उससे उनको पाप बन्ध हुआ करता, तो पशुचरानेवाले नीचकुली ग्वालेको कमलके फूलसे भगवानकी पूजा करनेपर उत्तम फलकी प्राप्ति न होनी और मालीकी लड़कियोंको पूजन करनेसे स्वर्ग न मिलता। इसीप्रका यूद्रोंसे भी नीचापद धारण करनेवाले मेडक जैसे तियंच (जानवर) को पूजनके संकल्प और उद्यम मात्रसे देवगतिकी प्राप्ति न होती [ क्योंकि जो काम बुरा है उसका संकल्प और उद्यम भी बुरा ही होता है अच्छा नहीं हो सकता] और हाथीको, अपनी सूंडमें पानी भरकर अभिषेक करने और कमलका फूल चढाकर बॉबी में स्थित प्रतिमाका नित्यपूजन करनेसे, अगले ही जन्ममे मनुष्यभवके साथ साथ राज्यपद और राज्य न मिलता। इससे प्रगट है कि शूद्रोंका पूजन करना असत्कर्म नहीं हो सकता, बल्कि वह सत्कर्म है । आराधनासारकथाकोशमें भी ग्वालेके इस पूजन कर्मको सत्कर्म ही लिखा है, जैसा कि ऊपर उल्लेख किये हुए श्लोक नं. १६ के चतुर्थ पदसे प्रगट है। इन सब बातोंके अतिरिक्त जनशास्त्रोंमें शूद्रोंके पूजनके लिये स्पष्ट आज्ञा भी पाई जाती है । श्रीधर्मसंग्रहश्रावकाचारके ९ वें अधिकारमें लिखा है कि “यजनं याजनं कर्माऽध्ययनाऽध्यापने तथा । दानं प्रतिग्रहश्चेति षट्कर्माणि द्विजन्मनाम् ॥ २२५ ॥ यजनाऽध्ययने दानं परेषां त्रीणि ते पुनः । जातितीर्थप्रभेदेन द्विधा ते ब्राह्मणादयः ॥ २२६ ॥" अर्थात्-ब्राह्मणोंके-पूजन करना, पूजन कराना, पढ़ना, पढ़ाना, दान देना, और दान लेना-ये छह कर्म हैं । शेष क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, इन तीन वर्गों के पूजन करना, पढ़ना और दान देना-ये तीन कर्म हैं । और वे ब्राह्मणादिक जाति और तीर्थके भेदसे दो प्रकार हैं। इससे साफ प्रगट है
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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