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बनारसीविलासः
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Tietoeteretetretetreteetsetsekate tretreteistertretetele kuitse breiteret. Lielie tretestetieteet tieteetse tretieteetateretetetetieteen
जिनमताधिकार ।
शिखरिणी। न देवं नादेवं न शुभगुरुमेनं न कुगुरुं
न धर्म नाधर्म न गुणपरिणद्धं न विगुणम् । न कृत्यं नांकृत्यं न हितमहितं नापि निपुणं विलोकन्ते लोका जिनवचनचक्षुर्विरहिताः ॥१७॥
कुंडलिया छन्द। देव अदेव नहीं लखें; सुगुरु कुगुरनहिं सूझ । धर्म अधर्म गनै नहीं; कर्म अकर्म न बूझ ॥ कर्म अकर्म न बूझः गुण रु औगुण नहिं जानहिं । हित अनहित नहि सधै; निपुणमूरख नहिं मानहिं ।। कहत बनारसि ज्ञानदृष्टि नहिं अंध अबेवहिं । जैनबचनदृगहीन; लखै नहि देव अदेवहिं ॥ १७ ॥
शार्दूलविक्रीडित । मानुष्यं विफलं वदन्ति हृदयं व्यर्थं वृथा श्रोत्रयो
निर्माणं गुणदोपभेदकलनां तेषामसंभाविनीम् । दुर्वारं नरकान्धकूपपतनं मुक्तिं बुधा दुर्लभां सार्वज्ञः समयो दयारसमयो येषां न कर्णातिथिः॥
३१ मात्रा सवैया छन्द। ताको मनुज जनम सब निष्फल; मन निष्फल निष्फल जुगकान। गुण अर दोष विचार भेद विधि; ताहि महा दुर्लभ है ज्ञान ॥
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