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________________ ( ७१ ) उसने वहां अपने घरके लोगोंका सारा वृत्तान्त कह सुनाया । साधु बोला,-"रे मूर्ख! अब तुझको समझ आई या नहीं ? देख ! संसारके प्यारे सम्बन्धी कैसे खार्थपर हैं । क्या अब भी तू उनके लिए पाप किए ही जाएगा ?" वाल्मीकि चुप हो गया और चित्रकी नाई होकर विस्मयके साथ उसकी ओर देखा किया । वाल्मीकि ऋषि कहते हैं कि “वह साधु मेरे चुप रहनेका लाभ उठाकर देर तक मुझको उपदेश सुनाता रहा और उसकी संगतिकी विभूति और उसकी शिक्षाका प्रभाव यह हुआ कि मेरा जीवन सर्वथा पलट गया"। नारद ऋषियों के शिगेमणि, देवताओंमें पूजनीक, मुनियोमें श्रेष्ठ, एक दासीके लड़के थे । उनकी मां एक साधुकी सेवा किया करती थी। नारद भी अपनी माताके साथ सदा साधुके भवनमें उपस्थित रहकर उसकी वाणी सुनते और उसकी टहल सेवा करते थे । साधुके सत्सङ्गका यह फल हुआ कि वह इस उच्च पदवीको पहुंच गए। __ इसी प्रकार अच्छे साधु महात्माओंके पास जानेसे मनुष्यमें साधु भाव और पवित्रता आती है, इसी लिए. कबीर साहिबन कहा है, ऋद्धि सिद्धि मांगू नहीं, मांगू तुमसे एह । निस दिन दर्शन साधुका; कहे कबीर मोहि देह ॥ सुख देवें दुखको हरें, दूर करें अपराध । कहे कबीर वे कब मिलें, परम स्नेही साध ॥
SR No.010129
Book TitleJina pujadhikar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherNatharang Gandhi Mumbai
Publication Year1913
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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