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तामसिक वृत्ति है । इस तीव्र अनुराग मूर्खता और स्वार्थको अपने मन और हृदयसे निकाल दो, फिर तुम्हें अपने जीवनमें कष्ट नहीं पहुंचेगा । बोझ उतार डालनेका तात्पर्य यह है कि अपने भीतरी स्वार्थको तज दो और शुद्ध और पवित्र प्रेमको स्थान दो । तुम अपना काम सच्चे प्रेमसे करने लगो, फिर तुम प्रसन्न और आनन्दमय रहोगे ।
सच पूछो तो मन मूर्खताके कारण अपने लिए आप बोझ उत्पन्नकर लेता है, और इस कारण आप ही दण्ड भोगता है । किसी मनुष्यके भाग्यमें सारी उमर बोझ उठाना नहीं लिखा है और दुःख और कष्ट यही किसीके सिरपर नहीं आन पड़ते । ये सब अपनी ही बनाई हुई वस्तु है | विवेक मनका राजा है, और जब काम प्रवल हो जाता है, तो आध्यात्मिक राज्य में खलबली मच जाती है ।
यहां हम दृष्टान्त देते है, - एक श्री है उसका बड़ा कुनवा है और वह प्रत्येक सप्ताह में पांच रुपए में गुजारा करती है । अपने घरके सारे कृत्य करती है, कपड़ेतक भी आप ही धोती है अपने रोगी पड़ोसियोंको देखने और उनकी दवा दारू करने के लिए भी समय निकाल लेती है, और न उधार लेती है न कभी निराश होती है । प्रातःकालसे लेकर रात तक प्रसन्न रहती है और कभी अपनी दशापर बुड़बुड़ाती नहीं । वह यह सोचकर आनन्दमें है कि मुझसे औरोंको सुख मिलता है । यदि वह यह सोचती कि और लोग तो छुट्टियां मनाते हैं, सुन्दर पदार्थ रखते है, मैं न रङ्गभूमिमें जाकर नाटक देख सकती हूं, न गाना सुन सकती हूं,