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( १४ ) बढ़ता है, और कठिनाई और भी अधिक प्रतीत होती है। यदि वह शान्त खभाव होकर उद्यम करने लगे और पिछली बातोंको एक २ करके सोचे तो वह अपनी भूल जान जाएगा, और उसे विदित हो जाएगा कि मैंने कहां २ ठोकरें खाई थीं, और यदि मैं तनिक विचार विवेक नियमावली या आत्मोत्सर्गसे काम लेता, तो सीधे मार्गपर पड़ जाता, और ठोकरें न खाता । जिस प्रकार अज्ञान, खार्थ, मूर्खता और अन्धकारके मार्ग हैं जिनका अन्त घबराहट
और संशय है, उसी प्रकार ज्ञान, आत्मत्याग, बुद्धिमत्ता और प्रकाशके भी मार्ग हैं जिनसे परम शान्ति और आनन्द प्राप्त होता है । जो मनुष्य इस बातको जानता है, वह साहस और धैर्यसे कठिनाइयोंका सामना करेगा और उसे उनपर प्रबल होनेसे भूल
और प्रमादमें सत्य, दुःखमें सुख और मनःक्षोभमें शांति प्राप्त होगी। __ अपनी कठिनाइयोंको दुःखदाई न समझो, वरञ्च यह समझो कि इनसे आगे जाकर लाभ होगा । यह भी न विचारो कि तुम इन कठिनाइयोंसे किसी प्रकार बच सकते हो, नहीं ऐसा कदापि नहीं हो सकता । तुम्हें चाहिये कि तुम इन कठिनाइयोंका शान्ति और गम्भीरतासे सामना करो, इनकी ऊंच नीचको देखो, इनके आदि अन्तपर विचार करो, और पूर्वापरपर ध्यान दो, भली भाँति सोचो समझो और अन्तमें इनपर प्रबल हो जाओ । ऐसा करनेसे तुममें बल और ज्ञान उत्पन्न होगा, और इस प्रकार श्रेय और सिद्धि प्राप्त करोगे । सच है:
न संशयमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति । संशयं पुनरारुह्य यदि जीवति पश्यति ॥