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( ३२ ) अन्य किसी प्रकारसे डरता नहीं है। सत्य है:-" परोपकाराय सतां विभूतयः।"
सरलीकरणमें मनुष्यका जीवन अधिक सरल और अधिक गम्भीर हो जाता है । इससे जीवनकी बाहरी टीपटाप और झूठे बखेड़े जाते रहते है और सच्चे गुण रह जाते हैं । इससे घबराहट, डर, व्यर्थ पछतावा और ऐसी बातें जो मन, आत्मा या शरीरको हानिकारक है सब जाती रहती हैं। जीवनका एक बड़ा उद्देश्य जिससे प्रत्येक दिनके विचार एकाग्रित हो जाते हैं और जिससे जीवनके दुःग्य, शोक और प्रमाद कुछ पीड़ा नहीं पहुंचा सकते, यही उद्देश्य सरलीकरणमें बड़ा सहायक है । देखो लड़ाई के समय सिपाही घायल होकर गी अपने घावोंको भृल जाते हैं या वे अपने घावोंकी पीडाको अनुभव ही नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि हम सचके लिए लड़ रहे हैं; इसी प्रकार सरलीकरणसे एक निकृष्ट पदका जीवन भी उन्नत हो जाता है, इससे जीवनमें उत्तमता और बड़ाई आ जाती है । इससे चित्तमें उदारता आ जाती है, आत्माकी उन्नति होती है और नैतिक शिक्षा मिलती है । इससे मनुष्य निष्काम होकर सरलता और ऋजुताका मार्ग ग्रह्ण करता है केवल इस लिए कि वह मार्ग सरल है न कि उसमें कुछ लाभ होगा या कोई सांसारिक कार्य सिद्ध होगा । इससे मनुष्यको ऐसी शान्ति और संतोष प्राप्त होगा जिसमें सूर्यरूपी आनन्दकी झलक होगी। सच कहा है:
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसां । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥