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उत्तम नीतिकी पराकाष्ठा या सबसे ऊंची चोटीपर जा खड़ा होगा, सांसारिक विषयभोग मोह और दुःख आदिको नीचे छोड़ जाएगा और उसे अपने सिरके चारों ओर ऊपरकी तरफ़ अथाह स्वर्ग ही वर्ग दिखाई देगा। ___ यदि कोई मनुप्य किसी दूरके शहर या किसी अभीष्ट स्थानमें पहुंचना चाहता है, तो उसे वहां विचरण करना होगा । कोई ऐसा नियम नहीं है कि वह झट वहां जा बैठे, वह वहांपर अवश्य परिश्रम करके ही पहुंच सकता है । यदि वह पांव २ चले तो उसे बहुत कुछ परिश्रम करना पड़ेगा, पर उसे रुपया नहीं खरचना पड़ेगा; यदि वह बग्गी या रेलगाडामें बैठकर जाए तो उसे परिश्रम कम करना पड़ेगा पर रुपया देना पड़ेगा जो रुपया उसने परिश्रम करके कमाया है । इस लिए किसी स्थानपर पहुंचनेके लिए परिश्रमकी आवश्यकता है; परिश्रम विना कुछ नहीं हो सकता; यह नियम है । आध्यात्मिक नियम भी यही है । जो मनुप्य किसी आध्यात्मिक स्थान यथा शुद्धता, दया, ज्ञान, या शान्तिपर पहुंचना चाहता है तो उसे पर्यटन करना चाहिये और वहां पहुंचने के लिए परिश्रम करना चाहिये । कोई ऐसा नियम नहीं है कि वह इन मुन्दर आध्यात्मिक स्थानोंमें विना परिश्रम किए झट जा बैठे । पहले उसे अत्यन्त सीधा मार्ग ढूंड लेना चाहिये
और फिर वहां पहुंचने के लिए परिश्रम करना चाहिये और अन्तमें वह अपने अभीष्ट स्थानपर अवश्य पहुंच जाएगा। ___ जो कुछ होता है शुभ ही शुभ है, क्योंकि सब कुछ नियमानुसार होता है और इसी कारण प्रत्येक मनुष्य अपने जीवनमें पवित्र शुद्ध और सीधा मार्ग विदित कर सकता है और ऐसा मार्ग