________________
HSGRATEGONDATIOGRADEDGECTREPROOPEDAGOGRICROSOLOR ६३४
जैनशतक ।
39000000000000000000000-2000rom aracecords Vo2006/09/29/06/29/de.
com
तिन विन लहै न हंस यह, शिवसरवरकी पार ॥ 0 सीझे सीझै सीझ हैं, तीनलोक तिहुँकाल
जिनमतको उपकार सव, जिन भ्रम करहु दयाल॥ 1 महिमा जिनवर वचनकी, नहीं वचनबल होय । । भुजबलसों सागर अगम, तिरै न तीरहिं कोय१०३ अपने अपने पंथको, पोखै सकल जहाँन ।
तेसैं यह मतपोखना, मत समझो मतिवान॥१०४ इस असार संसारमें, और न सरन उपाय । जन्म जन्म हूजो हमें, जिनवरधर्म सहाय ॥ १०५
अन्तप्रशस्ति ।
___ कवित्त मनहर । आगरेमें बालबुद्धि भूधर खंडेलवाल, बालकके ख्यालसो कवित्त कर जान हैं । ऐसे ही करत भयो जैसिंघसवाई सूबा, हाकिम गुलाबचंद आये तिहि थाने । हैं ॥ हरीसिंघ साहके सुवंश धर्मरागी नर, तिनके कहेसों जोरि कीनी एक ठान है । फिरि फिरि प्रेरे मेरे आलसको अंत भयो, उनकी सहाय यह मेरे मन माने है ॥ १०६॥
दोहा । सतरहसे इक्यासिया, पोह पाख तमलीन । तिथि तेरस रविवारको, शतक समापत कीन१०७
समाप्तोऽयं ग्रन्थः ।
श्रीशुभमस्तु । कल्याणमस्तु । & PeନଳଚଳଚBes
PROONGOLGIONSIONSO-STORAGENCOACOMDOMGDACTOASARDAGaributionidioGDACRACOAGOICOASTERSTOAMROASTEACTOASOAGES