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जैनशतक ।
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0 अहमिंद्र मेघरथराय । सरवारथसिद्धेश शान्तजिन, ये प्रभुकी द्वादश परजाय ॥ ८४ ॥
नेमिनाथके पूर्वभव ।
छप्पय । पहले भव वनभील, दुतिय अभिकेतु सेठ घर ।
तीजे सुर सौधर्म, चौम चिन्तागति नभचर ॥ 1पंचम चौथे स्वर्ग, छठे अपराजित राजा। । अच्युतेंद्र सातये, अमरकुलतिलक विराजा ।। . सुप्रतिष्ठराय आठम नर्वे, जन्मजयन्तविमान धर । फिर भये नेमि हरिवंशशशि,ये दशभव सुधि करहु नर।।
श्रीपार्श्वनाथके भवान्तर ।
कवित्त ( ३१ भात्रा )। __विप्रपूत मरुभूत विचच्छन, वज्रघोष गज गहन ६ मंझार । सुर पुनि सहसरश्मि विद्याधर, अच्युतस्वर्ग
अमरिभरतार ॥ मनुजइंद्र मध्यम ग्रेवेयिक, राजपुत्र आनंदकुमार । आनतेंद्र दशवें भव जिनवर, भये पासप्रभुके अवतार ॥ ८६ ॥
राजा यशोधरके भवान्तर ।
मत्तगयंद सवैया । राय यशोधर चन्द्रमती, पहले भव मंडल मोर ४ कहाये । जाहक सर्प नदीमध मच्छ, अजा अज भैंस
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