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जैनशतक |
भ्रात ! ऐसी है अँधेरी रात, जाग रे बेटोही ! इहाँ चोरनको डर है ॥ ६८ ॥
कपायजीतने का उपाय ।
मत्तगयन्द सवैया
छेमनिवास छिमा धुवनी विन, क्रोध पिशाच उर न टरैगो । कोमलभाव उपाव विना, यह मान महामद कौन रेगो || आर्जवसार कुठार विना, छलवेल निकंदन कौन करेगो । तोपशिरोमनि मंत्र पढ़े विन, लोभ फेणीविप क्यों उतरंगो ॥ ६९ ॥
मिष्टवचन |
terest area बोल बुरे नर ! नाहक क्यों जम धर्म गावें । कोमल वैन च किन ऐन, लगे कछ हूँ न सबै मन भावे || तालु छिंदै रसना न भिदै, न घंटे कछु अंक दरिद्र न आवै । जीभ कहें जिय हानि नहीं, तुझ जी सब जीवनको सुख पांव ॥ ७० ॥ धैर्यधारणांपदेश | कवित्त मनहर |
आयो है अचानक भयानक असाताकर्म, ताके करवेो बली कौन अह रे । जे जे मन भाये ते कमाये पूर्व पाप आप, तेई अब आये निज उदै काल
दूर
१ मुसाफिर । २ धूनी । ३ सर्पका जहर |
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