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कविवर भृधग्दामविरचित- १५ भरोसो जान कांपत है, याही डर ' डोकराने लाठी हाथ लीनी है ' ॥४०॥ ___जाको इंद्र चाहैं अहमिंद्रसे उमाह जासों, जीवमुक्तमाह जाय भीमल बहाव है । ऐसो
नरजन्म पाय विष विष खाय खोयो, जैसे काच , सां₹ मूढ़ मानक गमाव है ॥ मायानदी वूड़ भीजा ३ कायावल तेज छीजा, आया पन तीजा अब कहा . बनि आव है । तातें निज सीम ढोल नीचे नैन किये डोल, कहा बड़ बोल वृद्ध वदन दुराव है ॥ ४१ ॥
मनगयद , सवैया।। देवहु जोर जराभटको, जमराज महीपतिको अगवानी । उज्जलकश निगान धेरै, बहु रोगनकी । मंग फौज पलानी। कायपुरी तजि भाजि चल्यो जिहिं,
आवत जोवनभूप गुमानी । लूट लई नगरी सिगरी, दिन दोयम खोय है नाम निशानी ॥ ४२ ॥
दोहा। सुमतीहित जोवन समय, मेवहु विषय विडार । खलसांटें नहिं खोइये. जन्मजवाहर मार ॥४३॥
कर्तव्यशिक्षा।
मनहर। देव गुरु सांचे मान सांचो धर्म हिये आन, सांचोही. १ बुने । २ वदलेमें।
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