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راننده مقدرة م ثمرة، مرة, تدر بندی شهر در دی . ده ره ره ر . مرد بهره
कविवर भूधरदासविरचित
दोहा। कानी कौड़ी विषय सुख, भवदुख करज अपार । बिना दिय नहिं छुटि है, लेशक दाम उधार ॥ २४ ॥
शिक्षा।
छप्पय । दश दिन विषयविनोद, फेर बहु विपतिपरंपर । अशुचिगेह यह देह, नेह जानत न आप पर ॥ मित्र बंधु सनमंधि और, परिजन जे अंगी।
अरे अंध ! सब धंध, जान स्वारथके संगी ॥ परहित अकाज अपनो न कर, मूढराज!अब समझ उर । तजिलोकलाज निजकाजको. आज दाव है कहत गुर ॥
कवित्त मनहर । __ जोली देह तरी काढू रोगों न घेरी जाली, जरा । नाहिं नेरी जासों पराधीन परि है । जालों जमनामा
वरी देय न दमामा जोली, मानै कान रामा बुद्धि , जाइ न विगरि है ॥ ताली मित्र! मेरे निज कारज ३ सवार ले रे, पौरुप थकेंगे फेर पीछे कहा करि है ।
अहो आग आये जब झोंपरी जरन लागे, कुआके है खुदाये तब कौन काज सरि है ॥ २६ ॥
ما در ایران راه اندازه مهریه نفقه فر قرقره ای از شیری
بردار رم ترنمنثنری و
१ लेशमात्र भी । २ नगाडा । ३ आज्ञा । ४ स्त्री। aasaomaraGVAGroovesresvarvesarasvcoesrasvaavanasamasya
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