________________
तृतीय बयान : रस-विचार
१४३
मंद से हास्य दो प्रकार का जाता है ।" विजय के सर्वप्रथम हास्य के तीन भेद किए हैं-उत्तम, मध्यम और बधम । पुन स्थित बौर हसित की उम विहसित और उपहति को मध्यम तथा यपहसित कौर विहसित को अ माना है । अजितसेन ने हास्य के केवल तीन भेद किये है-उत्तम, और अधम ।" वाग्भट द्वितीय ने हास्य के तीन भेद माने हैं-स्मित, विहसित और अपहसित । पद्मसुन्दरमणि ने अजितसेन की तरह हास्य के उत्तमादि तीन भेद किए हैं । * सिद्धिचन्द्रमणि ने स्मित, हसित और अतिहासित को उत्तम - मध्यम पुरुषों मे अनुभाव स्वीकार किया है।"
उपर्युक्त विवेचन से ज्ञात होता है कि जैमाचायों ने हास्य रस की उत्पत्ति विकृत देश आदि से ही स्वीकार की है तथा उन्हें हास्य के वे ही भेद स्वीकार हैं, जिन्हें अन्य आलंकारिकों ने स्वीकार किया है ।
करुण रस
इष्ट के विनाश और अनिष्ट के संयोग से उत्पन्न होने वाला करुण रस कहलाता है । इसका स्थायिभाव शौक है। भरतमुनि ने शाप, क्लेश, विनिपाल, इष्टजन-वियोग, विभाव-नाश, वध, बन्ध, विद्रव, उपचात गोर व्यसन आदि विभावों से करुण रस की उत्पत्ति मानी है । ७,
-
जैनाचार्य आरक्षित ने लिखा है कि प्रिय के वियोग, बन्धन, वाहन, रोग, मरण और संभ्रम आदि से करुण रस की उत्पत्ति होती है । शोक, विलाप, मुख की म्लानता और रुदन आदि इसके चिह्न (अनुभाव ) हैं । यथा - प्रिय विषयक चिन्ता से मलिन चित्त और आंसुओं से भरी आंखों वाली है पुत्री ! उसके वियोग मे तेरा मुख कृश हो गया है ।" वाग्भट-प्रथम ने चौक से उत्पन्न रस को करुण कहा है। * हेमचन्द्र के अनुसार इष्ट-विनाथ आदि विभाव, देवोपालम्भ आदि अनुभाव, निर्वेद-ग्लानि बादि दुःखमय व्यभिचारिभाव और शौक रूप स्थायिभाव वाला करुण रस है । रामचन्द्र गुणचन्द्र, ११ नरेन्द्रप्रभ
१ अलंकार-महोदधि, २११७ वृत्त । ३. वर्तकार - चिन्तामणि, ५।२६-१०० ५. अकबरसाहित्य गारवर्षण, ४१२३, २५ । ६ काव्यप्रकाशन, पृ० १६ ।
८. अनुयोगद्वारसूत्र, द्वितीय भाग, पृ० ६ २. पाटाचंकार, १२२ । १०. काव्यानुवाच २११२ ।
११. हिन्दी
३१४ 1
२. गारार्णव चन्द्रिका ३१६६-०० ॥ ४ काव्यानुशासन, नाम् ० ५५३
७. नाट्यशास्त्र, ६६६, ०७५३
xd
J