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उसी के काम में मानायक सनी लोका समाधार मनmarks का परिहार स्वीकार करते हुए प्रतीत होते है। विमान के सपने का स्वरूप में वृत्ति सम्बा और पाक का प्रथम बार समाश किया है। जिसका में पूर्व प्रचलित रस, अलंकार, रीति, बकोक्ति और निपपांच सम्मान को अपने काव्य-स्वरूप में समान रूप से स्थान दिया है। बाम-दितीय और भावदेवसूरि मम्मट के ही अनुयायी है। सिविषयमणि मायके स्वरूप से असहमत हैं, इस प्रसंग में उन्होंने साहित्यदर्पणकार को ही बाप
इस प्रकार जैनाचार्यों ने अपनी नवीन सूझ-बूझ के साप काव्य-स्वरूप में कुछ नवीन तथ्यों का समावेश अथवा अनावश्यक का त्याग करते हुए अपना मत प्रस्तुत किया है। जिसमे उन्होंने प्रारम्भ से चली बाई परम्परा को, अक्षुण्ण बनाए रखने का सफल प्रयास किया है तथा काव्य-स्वरूप पर विभिन्न पष्टिकोणों से विचार कर एक नवीन चेतना का संचार किया है। काव्य-भेद
अलंकार शास्त्र मे करण्य-मेवो का विभाजन विभिन्न भाषारों को लेकर" किया गया है। सर्वप्रथम आचार्य नामह ने चार बाधार प्रस्तुत किये है१-छन्द के माधार पर-पाच और पद्य । २-भाषा के माधार पर सत, प्रातबार मात्र ३--विषयवस्तु के मापार परवसा आदि का प्रतिवर्ष कपिकाला । प्रस्त, कलाबित नीर शालाभित
', . स्वरूप विधान के मार कर-सवय (महाकाव्यो अभिनय (मा बाल्यायिका, कथा और अनिवड (मुक्तक)।
दणी ने छन्द के आसार पर भामह-सम्मत मध और Hat एक मिष नामक तृतीय भेद भी स्वीकार किया है। जिसके निशान नाटक. धादि है। इसके अतिरिक्त उन्होंने पम्पू को भी मिल के अन्तर्गत एक नवीन
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