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जैनाचार्यो का
कारखाव मे योगदान
वाम्मी, नवीन बयों का उद्योतक, शब्द, अर्थ और वाक्य के दोषों का जावा, भिवकार, कवि-मार्ग का अनुसरण करने वाला, अलंकार और रस का शाखा, बन्दसौहब एवं षडभाषाओं के नियमो में निष्णात, षडदर्शनों का माता, पित्याभ्यासी, बौकिक वस्तुओं का माता और छन्द शास्त्रज्ञ कवि कहलाता है । कवि की उपयुक्त परिभाषा में विनयचन्द्रसूरि की मान्यता है कि कवि को सम्पूर्ण विषयों का ज्ञाता होना आवश्यक है, चाहे वे लौकिकहो या अलोकिक, गुण हो या दोष, रस हों या अलकार, व्याकरण हो या दर्शन । नाना विषयों का समावेश ही उसकी पूर्णता है। कवि का इतना सष्ट मोर वृहद स्वरूप बन्यत्र देखने में नहीं आया है।
भावार्य विजयवर्णी ने कवि-स्वरूप का निरूपण करते हुए लिखा है किप्रतिमा-शक्ति सम्पन्न तथा व्युत्पत्ति और अभ्यास से युक्त अठारह स्थलो का वर्षन करने में निपुण व्यक्ति कवि है अथवा शक्ति, निपुणता और कवि-शिक्षा इन तीनो से युक्त तथा रस-भाव के परिज्ञान रूप गुणो से युक्त कवि है। इस तरह विजयवर्णी ने कवि-स्वरूप का निरूपण दो प्रकार से किया है। लेकिन इनमे पहला प्रकार महत्वपूर्ण है, क्योंकि उसमे प्रतिमा, व्युत्पत्ति, अभ्यास गौर अठारह स्थलों का वर्णन करने की बात कही गई है। यदि सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाये तो अठारह स्थलो का वर्णन करने की निपुणता रूप कथन का प्रतिभा में ही अन्तर्भाव हो जाता है। परन्तु विजयवर्णी द्वारा निरूपित कवि-स्वरूप में अठारह स्थलो के वर्णन की चर्चा का अपना महत्व है। वे बठारह स्थल कौन से हैं ? इसका विवेचन करते हुए आचार्य अजितमेन ने विखा है कि-चन्द्रोदय, सूर्योदय, मंत्र, दूत-सम्प्रेषण, जलक्रीडा, कुमारोदय, उचान, समुद्र, नगर, ऋतु, पर्वत, सुरत, युद्ध, प्रयाण, मधुपान, नायक
१ शब्दार्थवादी तत्वको माधुयोज प्रसाधक ।
वक्षो बाग्मी नवानामुत्पत्तिप्रियकारक ॥ सन्दार्थ वाक्यदोषज्ञश्चित्रकृत् कविमागवित् । पातालकारपर्वम्वो रसविद् बन्वसौष्ठवी ॥ पडभाषाविधिनिष्णात षड्दर्शनविचारवित् । नित्याभ्यासी व लोकशश्छन्द शास्त्रपटिष्ठवी ॥
-काव्यशिक्षा, ४४१५३-१५५ । २ भूगारार्णव-चन्द्रिका, २।१२।