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प्रथम अध्याय : जैन-वार्तकारिक वीर अर्तकारशास्त्र
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1 इन प्रशस्तियों से यह भी ज्ञात होता है कि इन्होंने अपने प्रभाव के द्वारा शत्रुजंय तीर्थ पर लगे हुए कर को माफ कराया था तथा सिद्धाचल पर्वत पर मंदिर निर्माण कार्य में बाधक राजकीय निशेधाज्ञा को भी हटवाया था 1
सिद्धिचन्द्रगणि अपने गुरु भानुचन्द्रगणि के अनेक साहित्यिक अनुहानों के सहयोगी थे। बाणभट्ट रचित कादम्बरी पर अपने गुरु के साथ लिखी गई sant टीका सर्वाधिक प्रसिद्ध है। इस टीका के अध्ययन से इनके कोश विषयक ज्ञान का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है, ये छ. शास्त्रों के ज्ञाता तथा फारसी के अध्येता थे ।
सिद्धचन्द्रगणि ने धातुमंजरी नामक ग्रन्थ की रचना वि० सं० १६५० ( ई० सन् १५९३ ) * और काव्यप्रकाश खण्डन की रचना बि० स० १७०३ ( ई० सन् १६४६) ६ मे की थी तथा बासवदत्ता की टीका सवत् १७२२ ( ई० सन् १६६५) में की थी । अत इनका साहित्यिक-काल उक्त तिथियो के मध्य मानना होगा । इतना लम्बा साहित्यिक काल इनके दीर्घजीवी होने का पुष्ट प्रमाण है ।
१ कादम्बरी-टीका उत्तरार्द्ध की अन्तिम प्रशस्ति निम्न प्रकार है-इति श्रीपादशाह श्री अकबर जलालदीन सूर्यसहस्रनामाध्यापक श्री शत्रुंजयतीर्थंकर मोचtreateकृत विधायक महोपाध्यायश्रीभानुचन्द्रगणिस्तच्छिष्याष्टोत्तरशताबमानसाधकप्रमुदितपादशाह श्री अकबर प्रदत्तखुष्कह मापराभिधानमहोपाध्याश्रीसिद्धिचन्द्रगणिविरचितायां कादम्बरीटीकामुत्तरखण्डटीका समाप्ता । - भानुचन्द्रगणिचरित - सिद्धिचन्द्रकृतग्रन्थ प्रशस्त्यादि, पृ० ५८ । २ जैन साहित्यनो सक्षिप्त इतिहास, पृ० ५५४ ।
३ जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग ६, पृ० २१६ | ४. कर्ता शतावधानानां विजेतोम्मत्तवादिनाम् ।
dar ale शास्त्राणामध्येता फारसीमपि ॥
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- ( भक्तामर स्तोत्रवृत्ति) भानुचन्द्रयभिचरित, पृ० ५९
५. जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ५, पृ० ४५ ६ संवत् १७०३ वर्षे आश्विन शुदि ५ गुरो लिखितम्- -काव्यप्रक श - खण्डन, पृ० १०१ । भानुचन्द्रमणि चरित संग्रहीत काव्यप्रकाश खण्डन की प्रशस्ति में लेखन काल संवत् १७२२ मिला है। - भानुचन्द्रगणि चरित, पृ० १२ । पृ० ६१ ।