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आयुः पुष्टिं करोतु प्रहरतु दुरितं मंगलानांधिनोतु | सौभाग्यं वृद्धिमुचैर्नयतु वितरताद्वैभवं संचिनोतु । रामा पद्माभिरामारमयतु सुयशः स्पष्टयित्वा तनोतु । पुत्रं पौत्रं प्रतापं प्रथयतु भवतामर्हतां भक्तिरुचैः ।
इसके पश्चात् कन्या को वर की बांई ओर बैठना चाहिये । इस विधान के अन्त में सब को मिलकर निम्न शान्ति पाठ पढना चाहिये ।
शान्ति पाठ
शास्त्रोक्त विधि पूजा महोत्सव सुरपती चक्री करें, हम सारिखे लघु पुरुष कैम यथा विधि पूजा करें । धन क्रिया ज्ञान रहित न जानें रीति पूजन नाथजी, हम भक्ति वश तुम चरण आगे जोड़ दीनं हाथ जी । दुखहरण मंगलकरण आशाभरण जिनपूजा सही, यह चित्त में सरधान मेरे शक्ति है स्वयमेव ही । तुम सारिखे दातार पाये काज लघु जाचूँ कहा, मुझे आप समकर लेहु स्वामी यही इक बांछा महा । संसार भीषण विपिन में वसुकर्म मिलि श्रातापियो, तिस दाहतें श्राकुलित चित्त है शान्तिथल कहूँ ना लियो । तुम मिले शान्तिस्वरूप शान्ती करण समरथ जगपती, वसु कर्म मेरे शान्त करदो शान्ति मय पञ्चम गती ।