________________
10 )
७- गृहस्थ धर्म का उपदेश :
-
सप्तपदी होने के बाद गृहस्थाचार्य को चाहिये कि समाज और देश की स्थिति के अनुसार गृहस्थ जीवन चलाने के लिये वर और कन्या को निम्न बातों पर प्रकाश डालने हुए सदुप देश दे ।
(अ) विवाह संस्था का इतिहास - विवाह की प्रथा कैसे ओर कब से प्रचलित हुई ? विवाह के भेद और उनमें ब्राह्मी विवाह की विशेषता ।
(श्री) ब्राह्मी विवाह का लक्षण
(इ) विवाह के उद्देश्य, गृहस्थ का स्वरूप.
(ई) सद्गृहस्थ के लक्षण,
( उ ) गृहस्थ के पट् श्रावश्यक धर्म,
(ऊ) गृहस्थ के कुल और जाति, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य, गृहस्थ समस्त श्राश्रमों का आधार है 1
८ फेरे अर्थात् अग्नि को परिक्रमाः
सदुपदेश सुनने के बाद वर और कन्या जीवन-यात्रा के लिये एक दूसरे के साथी बन कर उपस्थित जनता के सामने हवनकुण्ड की अग्नि के गिर्द सात परिक्रमा देवें ।
गृहस्थाचार्य को परिक्रमा के समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिये ।