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मुझ पर भी कृपा करें।" ___ 'प्रासाद-मण्डन' के शब्द भी महत्त्वपूर्ण हैं : "वस्त्र, स्वर्ण और धन से आचार्य का सम्मान करके ब्राह्मणों, दीनों, अंधो, और दुर्बलों को दान किया जाए; धम सभी प्राणियो के जीवन का सबसे बड़ा आधार है; धन दिए जाने पर मनुष्य सतुष्ट होते है।" __ 'प्रासाद-मंण्डन' से भी पाँच सौ वर्ष पर्व 'गोम्मटसार' (जीवकाण्ड) में आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धातचक्रवर्ती ने 'मनुष्य' की परिभाषा के अतर्गत जो लिखा है, वह इस प्रसग में विशेषरूप से उल्लेखनीय है:41 "सभी मनुष्य 'मनुष्य' इसलिए कहे गए हैं; क्योकि वे 1. कर्तव्य और अकर्तव्य में भेद मानते है, जो ज्ञान-वास्तु का प्रतीक है, 2. विविध विद्याओं एव शिल्प आदि मे निपुण होते है, जो शब्द-वास्तु का प्रतीक है, 3. अवधान आदि मानसिक कार्यों मे सलग्न होते है, जो अर्थ-वास्तु का प्रतीक है, और 4.मनु के वशज है, जो द्रव्य-वास्तु का प्रतीक है।"
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जन वास्तु-विद्या
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