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मध्य की बस्ती संग्रह, अहीरों की बसती 'घोष', तथा जिसमे सोने-चाँदी आदि की खानें हों-ऐसी बस्ती 'आकर कही जाती है।
वैशाली नगरी का वर्णन
वैशाली नगरी का नाम सर्वप्रथम तीर्थंकर महावीर कालीन एक मुद्रा में प्राप्त होता है जो कि भूगर्भ से उत्खनन में प्राप्त हुई । बौद्धग्रंथों में भी वैशाली नगरी के बारे में महत्त्वपूर्ण वर्णन प्राप्त होते हैं। श्री नेमिचन्द्र सूरि विरचित 'महावीर चरियं' नामक ग्रंथ में कहा गया है कि वैशाली नामक नगर इस भूतल पर उसी तरह से सर्वश्रेष्ठ था, जैसे कि किसी रमणी के मस्तक पर तिलक सुशोभित होता है। वैशाली नगर के बारे में कहा गया है कि "विशाला वसुधा यत्र तत्र वैशालीपुरम्"। यह वैशाली नगरी लिच्छवियों की राजधानी थी, जो कि भारतवर्ष में गणतंत्र परंपरा के जनक माने जाते हैं। बौद्धग्रंथ 'महावस्तु' में वैशाली नगरी को लिच्छवियों का गणतंत्र माना गया है। यह क्षेत्र बिहार प्रांत में गंगा के उत्तर तटवर्ती प्रदेश में स्थित था ।
आचार्य गुणभद्र उत्तरपुराण' (75/3) में वैशाली नगरी का वर्णन करते हुये लिखते हैं कि "वैशाली नगर अनेक नदियों से घिरा हुआ था एव अत्यत समृद्ध नगर था ।" मोक्षप्राभृत के टीकाकार आचार्य श्रुतसागर सूरि वैशाली का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि "नदियों के देश में स्थित वैशाली नामक पत्तन में चेटक महाराज राज्य करते थे।" इन सबसे वैशाली नगरी की भूमि की उदात्तता का बोध होता है। इस वैशाली नगरी में कुल ब्यालीस हजार मकान थे तथा प्रत्येक मकान मे उद्यान एवं तालाब बने हुए थे । इन मकानों मे कुल एक लाख अड़सठ हजार अंतरंग एवं बहिरंग नागरिक निवास करते थे जो कि अपने-अपने स्तर के अनुरूप भवनों में रहते थे। वैशाली नगर में उच्चस्तर के लोगों के लिए सात हजार स्वर्णमंडित गुम्बदवाले, मध्यमवर्ग के लोगों के लिए चौदह हजार रजतमंडित गुम्बदवाले तथा साधारणवर्ग के लोगो के लिए इक्कीस हजार ताम्रमंडित गुम्बदवाले भवन थे । तथापि वहाँ पर नीच ऊँच का भेद नहीं था। बौद्धग्रंथ 'ललितविस्तर' के अनुसार 'वैशाली नगर का प्रत्येक नागरिक अपने आपको राजा के समान अनुभव करता था। एक अन्य बौद्धग्रंथ 'महापरिनिव्वाणसुत्त' में महात्मा बुद्ध ने लिखा है कि "यह वैशाली नगरी लिच्छवियों के स्वर्ग के
(जैन वास्तु-विद्या
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