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________________ प्रकाशकीय पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज की पावन प्रेरणा से श्री कुन्दकुन्द भारती ने समयसार', बारस-अणुवेक्खा', 'संगीत समयसार' एवं 'तिरुक्कुरल' जैसे अनेकों महत्त्वपूर्ण ग्रन्थो का प्रकाशन किया; जिनको पाठको ने भरपूर आदर प्रदान किया। इसके फलस्वरूप इनमें से अनेकों ग्रन्थों के कई संस्करण भी प्रकाशित हुये। -यह हमें गौरव तथा हर्ष का विषय है। सम्प्रति देशभर में वास्तुशास्त्र' या 'वास्तुविद्या की चर्चा व्यापकरूप से चल रही है। अनेकविध ऊहापोह चल रहा है। ऐसे मे जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में 'वास्तुशास्त्र-सम्बन्धी किसी प्रामाणिक रचना की माँग धर्मानुरागीजन प्रायः करते रहते थे, जिसको पढ़कर 'वास्तुशास्त्र के सम्बन्ध में जैनदृष्टिकोण से परिचित हुआ. जा सके तथा व्यावहारिक जीवन मे उसका समुचित उपयोग किया जा सके। साथ ही यह भी अपेक्षित था कि वह अति विस्तृत या गूढ़ भी न हो, कि सामान्यजन उसका अभिप्राय ही नहीं समझ सके; तथा जो जैनशास्त्रो की मर्यादा मे रहकर ही सम्पूर्ण तथ्यो का आधुनिक ढग से व्यवस्थित प्रस्तुतीकरण करती हो। धर्मानुरागी विद्वान् डॉ० गोपीलाल 'अमर' ने इस विषय मे पर्याप्त श्रमपूर्वक अनेक ग्रन्थो का आलोडन कर सप्रमाण इस पुस्तक का लेखन किया एव एक बड़ी आवश्यकता की पूर्ति करने की दिशा मे सार्थक प्रयास किया है। तथा विद्वद्वरेण्य श्रद्धेय पं० नाथूलाल जी शास्त्री, सहितासूरि ने इसका अवलोकन कर इस "जैन वास्तुविद्या' रूपी भवन पर 'आशीर्वचन' का मंगल-कलश स्थापित कर इसे मगलमय बनाया है। सेवाभावी विद्वान् डॉ० सुदीप जैन ने सूक्ष्मतापूर्वक प्रत्येक विषय का आधुनिक वैज्ञानिक ढग से सम्पादन करते हुये इस पर संक्षिप्त किन्तु विशद प्रस्तावना लिखकर इसके पुस्तकीय अगोपागो को परिपूर्णता प्रदान की है। इसप्रकार मुख्यतः इन तीनों विद्वानो के श्रम का सुफल बनकर 'जैन वास्तुविद्या' नामक यह कृति पाठको के हाथो में प्रस्तुत करने का सौभाग्य कुन्दकुन्द भारती को मिल रहा है; अतः इन तीनो विद्वानो का हृदय से आभार मानता हूँ। विशेषत. पंडित नाथूलाल जी शास्त्री का अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, जिन्होने वयोवृद्धावस्था मे भी अत्यन्त श्रम एव समर्पणपूर्वक सूक्ष्म निरीक्षण करते हुये (जैम वास्तु-विधा
SR No.010125
Book TitleJain Vastu Vidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopilal Amar
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year1996
Total Pages131
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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