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लाटरी न आने से मै दुखी, (१५) शरीर मे रोगादि ना होने से मैं सुखी और शरीर मे रोगादि होने से मै दुखी, इसी प्रकार अनेक प्रकार की मिथ्या मान्यताओ को - जीवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल बताया है || १|| अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्यादर्शन वतलाया है ॥२॥ अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्याज्ञान वता या है ॥३॥ अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे आचरण को अगृहीत मिथ्याचारित्र बताया हे ||४|| वर्तमान मे विशेष रूप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म होने पर भी कुदेव- कुगुरुकुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी मान्यताओ को गृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ||५|| वर्तमान मे विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म होने पर भी कुदेव- कुगुरु- कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी मान्यताओ को गृहीत मिथ्याज्ञान बताया है || ६ || वर्तमान मे विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म होने पर भी कुदेव - कुगुरु-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी मान्यताओ को गृहीत मिथ्याचारित्र बताया है ।
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प्र० १२ - शरीर की अनुकूलता से में सुखी और शरीर की प्रतिकूलता से मै दुखी आदि ऐसी जीवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल रुप अगृहीत- गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि को प्राप्ति कर क्रम से पूर्ण सुखोपना कैसे प्रगट होवे -इसका उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मे क्या बताया है ?
उ०- चेतन को है उपयोग रुप, विनमूरत चिन्मूरत अनूप । पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनते न्यारी है जीव चाल । (१) मै ज्ञान-दर्शन उपयोगमयी जीव तत्त्व ह् । (२) मेरा कार्य ज्ञाता - दृष्टा है । (३) आख - कान-नाक औदारिक आदि गरीशे रूप मेरी मूर्ति नही है | चेतन्य अरुपी असख्यात प्रदेशी मेरा एक आकार है ।