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- प्र० १३० - रोग क्लेशादि दुःख दूर होने को सुख मानता है । इस वाक्य पर मोक्षतत्त्व सम्बन्धी जीव को भूल का स्पष्टीकरण कीजिये ?
उ०- प्रश्नोत्तर १२१ से १२८ तक के अनुसार उत्तर दो। '
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तीसरा अधिकार
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प्र० १ - संसार और मोक्ष किसे कहते हैं "
उ०- (१) आत्मा ज्ञाता - दृष्टा के उपयोग को जब परपदार्थ की और लक्ष्य रखकर परभाव मे यह मै' ऐसा द्रढ कर लेता है तब यही ससार कहलाता है । ( २ ) और जब स्व की ओर लक्ष्य करके उपयोग को स्व मे यह 'मै' ऐसा द्रढ कर लेता है तब यही मोक्ष कहलाता है ।
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प्र० २ - संसार परिभ्रमण का कारण क्या है ?
उ०- ऐसे मिथ्याद्रग - ज्ञान- चर्णवग, भ्रमत भरत दुख जन्म-मर्ण । ताते इनको तजिये सुजान, सुन तिन सक्षेप कहुँ चखान ॥ १ ॥ अर्थ - यह जीव मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचरित्र के वश हो कर- इस प्रकार जन्म-मरण के दुखो को भोगता हुआ चारो गतियो मे भटकता फिरता है । इसलिये इन तीनो को भली भाँति जानकर छोड देना चाहिये । इन तीनो का सक्षेप से वर्णन करता हूँ, । उसे सुनो !
प्र० ३ - जीव दुःख किससे होता है ?