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________________ ( ३८ ) परन्तु जो अपने को ज्ञानी मानते है वह भी हिसादि पापाश्रव को है और अहसादि पुण्याश्रव को उपादेय कहते सुने देखे जाते है । क्या ज्ञानियों को भी आश्रवतत्व सम्बन्धी जीव की भूलरुप अगृहीतगृहीत मिथ्यादर्शनादि होते है ? उ०- ज्ञानियों को बिल्कुल नही होते है । (१) क्योकि जिनजिनवर और जिन वरवृषभो ने हिसादिरुप पापाश्रव हेय है ओर अहिसादिरूप पुण्याश्रव उपादेय है ऐसी खोटी मान्यता को आश्रवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरुप अगृहीत- गृहीत मिथ्यादर्शनादि बताया है, परन्तु ऐसे कथन को नही कहा है । (२) ज्ञानी जो बनते है वे आश्रवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूलरूप अगृहीत गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव करके ही बनते है । ( ३ ) ज्ञानियो को हेय ज्ञेय उपादेय का ज्ञान वर्तता है । (४) हिसादिरुप पापाश्रव हेय है ओर अहिसादिरुप पुण्याश्रव उपादेय है ज्ञानियों के ऐसे कथन को आगम मे उपचरित सद्भूत व्यवहारनय कहा है । है | प्र० ४६ - हिसा का भाव हेय है और अहिसा का भाव उपादेय इस वाक्य पर आश्रवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए । उ०- प्रश्नोत्तर ४१ से ४८ तक के अनुसार उत्तर दो । प्र० ५०-झूठ बोलने का भाव हेय है और सत्य बोलने का भाव उपादेय है । इस वाक्य पर आश्रवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए । A उ०- प्रश्नोत्तर ४१ से ४८ तक के अनुसार उत्तर दो । प्र० ५२ - चोरी करने का भाव हेय है और चोरी करने का भाव उपादेय है । इस वाक्य पर आश्रवतत्व सम्बन्धी जीव की भूल का स्पष्टीकरण कीजिए ।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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