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( २७४) भाव शुभाशुभ वन्ध स्वरुप, गुद्ध चिदानन्दमय मुक्तिरुप ।। मारग दिखाती हे वाणी, अमर तैरी जग मे कहानी ।। ३ ।। चिदानन्द चैतन्य आनन्द धाम, जान स्वभावी निजातम राम ।। स्वाश्रय से मुक्ति बखानी, अमर तेरी जग मे कहानी ।। ४ ।।
५६. ध्रुव-ध्रुव ये शाश्वत सुख का प्याला, कोई पियेगा अनुभव वाला ॥ टेक" मैं अखण्ड चित् पिण्ड शुद्ध हूँ, गुण अनन्त वन पिण्ड बुद्ध हूँ॥ ध्रुव की फेरो माला, कोई पियेगा अनुभव वाला ।। १ ।। मगलमय हे मगलकारी, सत् चित् आनन्द का धारी ।। ध्रुव का ही उजियारा, कोई पियेगा अनुभव वाला ॥ २ ॥ ध्र व का रस तो ज्ञानी पीवे, जन्म-मरण के दुख मिटावै ।। ध्रुव का धाम निराला, कोई पियेगा अनुभव वाला ॥ ३ ॥ ध्रुव की धूनि मुनि रमावे, ध्रुव के आनन्द में रम जावै ॥ ध्रुव का स्वाद निराला, कोई पियेगा अनुभव वाला ॥४॥ ध्रुव का गरणा जो कोई आवे, मोह गत्रु को मार भगावे ।। ध्रुव का पन्थ निराला, कोई पियेगा अनुभव वाला ॥५॥ ध्रुव के रस में हम रम जावे, अपूर्व अवसर कब यह पावे।। ध्रुव का जो मतवाला, वो पियेगा अनुभव वाला ॥ ६॥
५७. चेत रे चेतन ओ प्यारे परदेशी पन्छी जिस दिन तू उड जायेगा। तेरा प्यारा पि जरा पीछे यहाँ जलाया जायेगा। टैक । जिस पिजरे को सदा सभी ने पाला-पोसा प्यार से। खूब खिलाया खूब पिलाया, हरदम रखा सभार के ॥ तेरे होते-होते नीचे इसे सुलाया जायेगा। ओ प्यारे परदेशी पछी, जिस दिन तू उड जायेगा ॥१॥