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( २६४ ) सर्वथा भिन्न है और सोने के हार सम्बन्धी जान आत्मा से एकमेक है
और सोने के हार से सर्वथा भिन्न है । (२) उसी प्रकार यह मेरा सोने का हार है इसमे सोने के हार सम्बन्धी राग पुद्गल से (सोने के हार से) एकमेक है, आत्मा से सर्वथा भिन्न है और सोने के हार सम्बन्धी गग का ज्ञान आत्मा से एकमेक हे और गग से सर्वथा भिन्न है। ऐसा वस्तुस्वरूप है। (३) अज्ञानी जीव सोने के हार को अपना मानता है उसी प्रकार विश्व के भिन्न पदार्थों को अपना मानता है और सोने के हार सम्बन्धी राग को अपना मानता है , उसी प्रकार समस्त प्रकार के राग को अपना मानता है-इस कारण चारो गतियो मे घूमकर निगोद मे चला जाता है। (४) ज्ञानी जीव अत्यन्त भिन्न पर पदार्थो को भिन्न जानता है उसी प्रकार अत्यन्त भिन्न पर पदार्थो सम्बन्धी राग पो भिन्न जानता है। ज्ञानी जीव विश्व के पदार्थों को व्यवहार से ज्ञेय तथा अस्थिरता सम्बन्धी गग को हेय व जेय जानता है । वैसे तो ज्ञान पर्याय जेय और मुझ आत्मा ज्ञायक है। परमार्थ से मैं आत्मा ज्ञायक और ज्ञान पर्याय शेय, ऐसे भेद से भी कार्य सिद्धि नहीं होती है । मुझ आत्मा ज्ञायक-नायक ऐमा अनुभव करता है । और क्रम से श्रेणी माडकर मोक्षरूपी लक्ष्मी का नाथ बन जाता है।
प्र० १४-जैन दिगम्बर दीक्षा लेकर प्रात्मकार्य करूंगा। इस वाक्य में दिगम्बर दीक्षा क्या है ?
उत्तर-तीन चौकडी कपाय के अभावरूप सकलचारित्रदशा ही दिगम्बर दीक्षा है।
प्र० १५-श्रावकपना क्या है ?
उत्तर-दो चौकडी कपाय के अभावरूप देशचारित्रदशा ही श्रावकपना है।
प्र० १६ - सम्यग्दृष्टिपना क्या है ? उत्तर--श्रद्धागुण की शुद्ध पर्याय निश्चय सम्यग्दर्शन । साथ मे