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है । यहाँ व्यवहार अपेक्षा कथन किया है - ऐसा न जानने के कारण दिगम्बर धर्मी अन्यमतावलम्बी से भी बुरा ही है ।
प्र० ७ - दिगम्बर धर्मी होने पर अध्यात्म के अनुसार जीव- अजीव का कथन करे तो क्या उसका जीव अजीव का श्रद्धान ठीक नही है ?
उत्तर - अध्यात्म अनुसार जीव-अजीव की बात करने वाला भी झूठा ही है । क्योकि अन्तरंग श्रद्धान नही है । (आत्म सन्मुख होकर सम्यग्दर्शन प्राप्त नही किया है) जिस प्रकार शराबी शराब के नशे मे माँ को माँ कहे, स्त्री को स्त्री कहे वह भी सयाना नही है, उसी प्रकार अध्यात्म के अनुसार जीव- अजीव की बात करने वाला भी सम्यकत्व नही है |
प्र० ८- मुझ आत्मा सिद्ध समान शुद्ध है, केवलज्ञानादि सहित है, सिद्ध समान सदा पद मेरो - ऐसा निश्चयाभासी के समान अध्यात्म की बात करने वाला दिगम्बर धर्मो झूठा क्यो है ?
उत्तर - जैसे किसी और की ही बाते कर रहा हो इस प्रकार से आत्मा का कथन करता है परन्तु यह आत्मा मै हूँ - ऐसा वर्तमान मे अनुभव न होने से अध्यात्म की तरह जीव की वात करने वाला दिगम्बर धर्मी भी झूठा ही है ।
प्र० e - आत्मा ज्ञान दर्शन का धारी है शरीर जड है । आत्मा से शरीर का सम्बन्ध नही है ऐसा व्यवहाराभासी की तरह दिगम्बर धर्मो जीव- अजीव का कथन करने वाला झूठा क्यो है ?
उत्तर - जैसे किसी और को और से भिन्न बतलाता हो; उसी प्रकार जीव - अजीव की भिन्नता का वर्णन करने वाला व्यवहाराभासी की तरह दिगम्बर धर्मी भी झूठा ही है। क्योकि मुझ आत्मा इस शरीरादि से सर्वथा भिन्न है ऐसा आत्म स्वभाव सन्मुख निर्णय ना होने से स्व-पर की बात करने वाला दिगम्बर धर्मी भी झूठा ही है।