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( २५६ ) प्र० ५६-अध्यवसाय क्या है ?
उत्तर-सुबह से शाम तक जितना कार्य दिखता है वह सब आहारवर्गणा का ही है। किसी आत्मा का या किसी दूसरी वर्गणा का नहीं है। लेकिन इन सब कार्यो को मै करता हूँ यह मिथ्या अध्यवसाय है।
प्र० ५७-मिथ्या अध्यवसाय को खोलकर समझाइये ?
उत्तर-उठना-बैठना, खाना-पीना, भोगादि की क्रिया, दुकान खोलना-बन्द करना, दूध-पानी पीने की क्रिया आदि सब आहारवर्गणा का कार्य है-इन सब कार्यो को मै करता हूँ मै भोगता हूँ आदि एकत्व बुद्धि मिथ्या अध्यवसाय है। यह अध्यवसाय अनन्त ससार का कारण है।
प्र० ५८-क्या देखने मे आता है ?
उत्तर-सम्यग्दृष्टि को छोडकर सारा विश्व दुखी ही देखने मे आता है। विश्व के समस्त मिथ्याष्टि कोई किसी चक्कर मे, कोई किसी चक्कर मे है जरा भी चैन नही है ।
प्र० ५६ दुखी क्यो है ?
उत्तर-जिनसे अपना किसी भी अपेक्षा किसी भी प्रकार का कर्ता-भोक्ता का सर्वथा सम्बन्ध नहीं है उन्हे अपनी बनाना चाहता है वे अपने किसी भी प्रकार नहीं बन सकते है । क्योकि प्रत्येक द्रव्य अनादिनिधन अपनी-अपनी मर्यादा लिये परिणमे है । कोई किसी के आधीन नही है । कोई किसी के परिणमाया परिणमता नहीं है। ऐसा जाने-माने तो सम्पूर्ण दु ख का अभाव हो जावे ।
प्र० ६०-थोडे मे जैन-दर्शन का सार क्या है ?
उत्तर-(१) शुभा गुभ भाव ससार है । (२) शुद्ध भाव मोक्ष और मोअमार्ग है, (३) शरीरादि नोकर्म व द्रव्यकर्म से तो सर्वथा सम्बन्ध नहीं है।